Description
शब्दनाद, शब्द जो सहित्यकार की जमापूजी होती है नाद जो ऊर्जा शक्ति है, जो हर उस ध्वनि से जुड़ी है, जो हमारे आसपास मौजूद है! जो हमारे मन विचार में समाहित है! शब्दनाद नाम मेरे मस्तिष्क मे चल रहे मौन विचारों में समाहित वो सृजन है, जिसका मैंने सतरंगी विधाओं में पिरोया है। अध्यात्म से लेकर जीवन में घट रही घटनाओं को, मुट्ठी से फिसलती रेत को रोकने की कोशिश की है! जब हम सामाज में रहते है, तो हमपर बहुत सारी पाबंदियां भी होती है। उसी समाज में जी रहे हमारे लोग जो कटु शब्द बोल कर हमें, उद्वेलित करते हैं। जिनके द्वारा बोले गये, तीक्ष्ण शब्द हमे मूक कर देते हैं, जब हम अपने भाव प्रदर्शित नहीं कर पाते, उन्हीं भावो की वजह से जन्म होता है, आसुओं का, जिनका वेग इतना तीव्र होता है, की मन उद्वेलित हो जाता है! फिर एक बेवडर के साथ होता है, शब्द नाद, जी है यही विषय इस पुस्तक के लिए सही मायने में सटीक है, जिससे एक संहित्यकार का जन्म होता है! जो अपने भावों को शब्दों के मोती से बांधता है, इस पुस्तक में यथा संभव यही कोशिश की गयी है की पाठकों को बांध सके, एवं अपनी एक अलग सी पहचान बना सके, धन्यवाद” रीमा महेंद्र ठाकुर
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