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मेवाड़ में जन जागरण के प्रमुख पुरोधा – एक तुलनात्मक अध्ययन (1901 से 1948 )

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मेवाड़ में जन जागरण के प्रमुख पुरोधा –
एक तुलनात्मक अध्ययन (1901 से 1948)

मेवाड़ अपने गौरवपूर्ण और गरिमा मंडित ऐतिहासिक परम्पराओं के कारण भारत के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान रखता है। इसके इतिहास में शौर्य, श्रृंगार, कला और साहित्य का विलक्षण संगम दृष्टिगत होता है। यहाँ के वीर-वीरांगनाओं ने स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर सहर्ष प्राणोत्सर्ग कर राष्ट्रीय अस्मिता को अक्षुण बनाये रखने का प्रयत्न किया। देश को अंग्रेजी आधिपत्य से स्वतंत्र कराने के लिए किये गये संघर्ष में मेवाड के पुरोधाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वतंत्रता मानव का नैसर्गिक स्वभाव रहा है। इस स्वभाव की रक्षा हेतु उसने सदैव प्रतिरोध किया है। इस क्रम में मेवाड़ में अहिंसात्मक और उग्र क्रांतिकारी दोनों प्रकार के प्रतिरोध हुए। नेतृत्व का अस्तित्व आदिकाल से चला आ रहा है। मानव के असभ्य जीवन से उसके सभ्यता के उच्चतम् शिखर तक पहुँचने की अवधि में नेतृत्व सदैव विभिन्न रूपों में विद्यमान रहा है। विश्व में समाज व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करने में नेतृत्व की अहम् भूमिका रही है। प्रस्तुत पुस्तक में मेवाड़ में जन-जागृति का दीप प्रज्ज्वलित कर नेतृत्व की अमिट छाप छोड़ने वाले पुरोधाओं के योगदान का तुलनात्मक अध्ययन नेतृत्व के विभिन्न प्रकारों यथा क्रान्तिकारी नेतृत्व, कृषक एवं भील नेतृत्व एवं प्रजामण्डल नेतृत्व को आधार बनाकर किया गया है।

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