Description
“चाँद की बाँहों में है तस्वीर तुम्हारी” यह कौमुदी की दूसरी पुस्तक (रचना-संग्रह) है । इसके पहले “समुद्र-मंथन” में लेखिका ने क्लिष्ट हिंदी शब्दों के माध्यम से मन में उपजे भावों का पन्नों पर अंकन किया था । परंतु, अपनी इस किताब में कौमुदी ने सरल हिंदी में लिखी स्वरचित रचनाओं को संग्रहित किया है । इसमें यथार्थ की झलक है, कल्पना का संयोग है, कहीं-कहीं प्रेम उमड़ता दिख पड़ता है तो कहीं-कहीं पीड़ा बोल पड़ती है । स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार हों चाहे जीवन की विडम्बनाएँ, अपने भावों को कौमुदी ने किताब में बखूबी उकेरा है । प्रेम का प्राकट्य भी है और प्रेरणात्मक रचनाएँ भी हैं । कहीं-कहीं विद्रोही स्वर की मुखर झंकार भी सुनाई देती है । समाज को आईना दिखाती हुई बेबाकी से लिखी रचनाएँ हैं । जीवन को प्रेरित करती रचनाएँ घने अंधियारे में आशा का दीप जलाती प्रतीत हो रही हैं । प्रेम का वर्णन कल्पनाओं का संयोग हो सकता है परंतु, प्रेम की वास्तविकता दिखती है रचनाओं में । इस पुस्तक में कौमुदी रचित कुछ क्षणिकाएँ भी हैं जो स्त्रियों की वर्तमान स्थिति पर आधारित हैं । और अंत में इनकी लिखी ‘नन्ही रचनाएँ’ उत्कृष्टता का उदाहरण हैं ।
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