Description
कवियित्री अमीता सिंह की काव्य-धारा कल-कल बहती स्रोतस्विनी सम पहाड़ों को चीरती… तट-रुहों को सहलाती… पवन संग वीचि-किल्लोल करती निरंतर बिना थके गंतव्य की यात्रा कर रही है
नदी-तरंग के समान अमिता की शब्द-लहरियाँ, नए-नए प्रतिमान बनाती नए-नए भावों का स्पर्श करती… नए-नए उपमान गढ़ती… अबाध गति से अपनी लक्ष्य की ओर अग्रसर है. बचपन से ही प्रकृति, वन, उद्यान, चाँद-सूरज-तारों के संग उनके संवाद होने लगे थे. यही प्राकृत निर्मल भाव, संवादों के संग उनकी कविताओं में परिलक्षित होता है ।
उनकी कविताओं में अभिधा लक्षणा के साथ ही व्यंजना-शक्ति अपने साथ अर्थ-ध्वनि को दूर-दूर तक ले जाती है और पाठकों का मन कभी आह्लाद से भर जाता है कभी आंदोलित होता है. यहां यह मुहावरा सार्थक होता है कि ‘जहां न जाए कवि, वहां जाए रवि’. रचनाकार की काव्य-डायरी में बचपन-कैशोर्य तारुण्य-प्रौढ़ मन की कविताएं संग्रहित हैं. वे अपनी काव्यांजलि प्रतिदिन देवी मां को पूजा में समर्पित करती है, प्रतिदिन एक कविता लिखना, उनके लिए अस्तित्व होने की अनुभूति है ।
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