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शब्द ही तो हैं

Description

विचारों के अरण्य में शब्दों के इंद्रधनुषी पुष्पों का उगना, खिलना ,मुरझाना और फिर उसी स्रोत में धूल-धूसरित हो जाना ही शब्दों की नियति है । ब्रह्मांड की उत्पत्ति,पालन और विसर्जन के मूल में शब्द-ब्रह्म ही है ।
शब्द ही तो हैं जो ध्वनि-तरंगों को आकार देते हैं ।
शब्द ही तो हैं जो निराकार से साकार का सृजन कर देते हैं ।
कवि रहे न रहे,शब्द रहेंगे ।
अनागत के सहारे,लंबी होती परछाइयां, सिमटती जिंदगी ।
मैं, तुम और सब के बीच आरोहण करते ये मायावी आकृतियां , शब्द ही तो हैं ।
उलझे-सुलझे विचारों की ये पुष्पांजलि यदि आपको कचोटे तो सोच लेना कि शब्द ही तो हैं ।

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