Description
अप्रत्यक्ष की चोट धूमिल होती है कुछ कल्पनाएं जो अज्ञात की बात और अनुपस्थितियों की उपस्थितियों को दर्शाता है, जो अदृश्य है। अब कुछ चोट लिए तैयार हंसते मुस्कुराते इक पुरानी याद से मिलाती.. जो उम्र कैद के समान जीवन के कई पहलुओं का सिफ़त रहता है।
इस पुस्तक में एक ललाई लिए धुंधला सा राज.. जो कोई कहता नही..
मानो बादलों में धूमिल होने का भाव जो गैरहाजिरी के समान दिखता है
और हा.. जो कुछ कहने से डरता है लेकिन शायद इसलिए इस तरह और चोट प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष से अपने आप को भी अलग करता है। अब कुछ तलाश जारी है जो हमने महसूस किया है इस पुस्तक में लिखा है जो आपबीती आयनों के समान प्रत्यक्ष रूप से आपसे अपनी बात करेंगी औ सत्य कहेगी। और जीवन की पगडंडी में टेढ़े मेढे ही सही.. इक दिशा तय करने में सक्षम खुद से महसूस होगा ।
अब यू..
चंद कदमों का रास्ता बस सर्वत्र है ..
साहस मेहनत शेष सिर्फ़ यही अर्थ है..
डॉ शैलेश कुमार
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