Description
“रंग बनारसिया”, लेखिका की दूसरी पुस्तक है। मित्रों मेरी यह कहानी शुरू होती है विश्व की प्राचीनतम नगरी काशी से जहां कहते हैं कि, कंकड़-कंकड़ में शंकरजी विराजमान हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यह नगरी भोले बाबा के त्रिशूल पर टिकी हुई है।
आध्यात्मिकता यहां की आबो हवा में है। शंख, घंटा, घड़ियाल की ध्वनि, दीप धूप अगरबत्ती की खुशबू बनारस के माहौल को एक विलग ही पहचान देती है। मेरी कल्पना की दुनिया में यहां की गलियों से यह प्रेम कहानी निकली है जो बनारसी या भोले-भाले बबुआ के दिल की धड़कनों का लेखा-जोखा भी आपके समक्ष पेश करती है।
हमारी कहानी के नायक बबुआ एक सरल हृदयी भोले भक्त हैं जिनका दिल एक मुंबइया हसीना के लिए धड़क जाता है और वो अपने प्रेम को तलाशते बनारस की गलियों से मुंबई तक का सफर करते हैं। बबुआ का इश्क़ तमाम ऊंची-नीची, ऊबड़-खाबड़ राहों का सफर तय करता पुनः काशी में कुछ रोचक घटनाओं का साक्षी बनता है।
अब यह इश्क़ मुकम्मल होता है या उनकी प्रेम कहानी अधूरी रहती है यह तो आपको यह किताब पढ़ कर पता चल ही जाएगा लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य जो आपसे साझा करना है वो यह कि मेरी कोशिश है कि इस किताब के रास्ते आप बनारस के इंन्द्रधनुषी रंगों से रूबरू हो सकें। वहां की संकरी गलियों की सैर तो करें ही साथ ही साथ काशी की विशद संस्कृति और सादगी को नजदीक से महसूस कर सकें । बनारस जिसके नाम में ही रस है वहां के फक्कड़ मस्तमौला बनारसिया रंग और अंदाज से भी आपका परिचय हो सके । मुझे विश्वास है कि बनारसिया अंदाज और इस शहर की सरलता आपको मुग्ध करेगी और आप सभी बबुआ की कहानी पढ़कर आनंद सागर में गोते लगा सकेंगे।
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