Description
विविधता में एकता भारत की प्रमुख सांस्कृतिक विशेषता है। विश्वगुरू भारत देश का सबसे बड़ा राज्य राजस्थान अपनी सांस्कृतिक सम्पन्नता, प्राकृतिक सौन्दर्य और ऐतिहासिक तथ्यों की दृष्टि से अद्वितीय स्थान रखता है। राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा सम्पूर्ण राज्य को पर्यटन विकास की दृश्टि से कर्इ परिपथों में विभाजित किया गया है। मेवाड़ सर्किट भी इन्ही परिपथों में सम्मिलित है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इस नाते वह समाज में निवास करता है और अपना मनोरंजन स्वस्थ पर्यटन के माध्यम से सम्पन्न करता है क्योकि पर्यटन मनुश्य का स्वभाविक गुण है। विश्व में पर्यटन की अवधारणा अत्यंत प्राचीन है। प्राचीन संस्कृत साहित्य में पर्यटन के हेतु “अटन“ शब्द प्रयुक्त होता है जिसका शाब्दिक अभिप्राय कुछ समय के लिए घर छोड़कर अन्यत्र स्थान पर जाना होता है। संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य में ’अटन’ शब्द मुख्य रूप से तीन अर्थो में प्रयुक्त हुआ है- पर्यटन (ज्ञान और आनंद के लिए भ्रमण), देशाटन (दूसरे देश में व्यापार के लिए जाना) तथा तीर्थाटन (धार्मिक महत्व के स्थानों का भ्रमण)।
अपनी इसी अभिरूची से वशीभूत होकर मानव ने प्राचीनकाल से अपनी आध्यात्मिक प्रवृत्ति को उजागर करने एवं भौतिक, उपभोगतावादी संस्कृति से दूर आत्मसुख प्राप्त करने के लिए देश-विदेश की यात्राएँ करता था। प्रस्तुत पुस्तक मेवाड़ सर्किट में पर्यटन का विकास: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन के अन्तर्गत मनुष्य की पर्यटन से संबंधित समस्त सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक अभिरूचियों को दृश्टिगत रखते हुए वर्णित करने का प्रयास किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम अध्याय मेवाड़ सर्किट की ऐतिहासिक एवं भौगोलिक पृष्ठभूमि में मेवाड़ सर्किट के भौगोलिक उच्चावच, स्थित एवं विस्तार, तापमान, जलवायु आदि का विषय प्रवेश के रूप में वर्णन किया गया है। इसी अध्याय में मेवाड़ सर्किट की ऐतिहासिक पृश्ठभूमि के अन्तर्गत मेवाड़ के राजवंश का विशुद्ध वर्णन उजागर करने का प्रयास किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक का द्वितीय अध्याय पर्यटन की अवधारणा से संबंधित रखा गया है। इसी अध्याय में पर्यटन की अवधारणा के अन्तर्गत पर्यटन का अर्थ, प्रकार, पर्यटन के तत्व आदि को समाहित किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक का तृतीय अध्याय मेवाड़ सर्किट के ऐतिहासिक एवं पर्यटन पुरातात्विक स्थल के नाम से समाहित किया गया है। इस अध्याय के अन्तर्गत मेवाड़ सर्किट में सम्मिलित उदयपुर, चित्तौड, राजसमंद और भीलवाड़ा जिलें के ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थलों का विस्तारपूर्वक विश्लेशण किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक का अध्याय चतुर्थ मेवाड़ सर्किट के भौगोलिक पर्यटन स्थल के नाम से समाहित किया गया है। इस अध्याय में मेवाड़ सर्किट के प्रमुख उद्यानों, जलसंसाधनों, बावड़ियों, कुंड़ों आदि के स्थापत्य एवं कलात्मक शिल्प का वर्णन पर्यटन को आधार बनाकर किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक का अध्याय पंचम मेवाड़ सर्किट के धार्मिक पर्यटन स्थल के आस-पास रखा गया है। इस अध्याय के अन्तर्गत मेवाड़ सर्किट के धार्मिक पर्यटन स्थलों को विनायक, शैव, वैष्णव वल्लभ, शाक्य, जैन एवं सुफी दरगाओं में विभाजित कर वर्णित किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक का अध्याय षष्ठम मेवाड़ सर्किट की लोक संस्कृति और पर्यटन के नाम से संबोधित किया गया है। इस अध्याय में मेवाड़ सर्किट की लोक संस्कृति के वाहक लोक नृत्य एवं नाटक, लोक देवी-देवता, उत्सव मेले, एवं त्योहारों का विश्लेष्णात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक का अध्याय सप्तम मेवाड़ सर्किट के पर्यटन स्थलों का आर्थिक विकास में योगदान के अन्तर्गत मेवाड़ सर्किट में समाहित विभिन्न जिलो में प्रचलित हस्तशिल्प उद्योग एवं पर्यटन से संबंधित विभिन्न सांख्यिकिय आंकड़ों का वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक का अध्याय अष्ठम उपसंहार के नाम से प्रस्तुत करते हुए इसमें मेवाड़ सर्किट में पर्यटन के विकास हेतु राज्य पर्यटन विभाग द्वारा किये जा रहे प्रयासों का वर्णन किया गया हैं। इसी अध्याय में पर्यटन के विकास हेतु आवश्यक सुझाव भी प्रस्तुत किये गए है।
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