फिर लौट बहारें आईं

Description

हमारे चारों ओर एक जीवन है

इसी के अतिक्रमण की कोशिश करती है

कविता—-

 

शून्य से नितान्त–

नितान्त शून्य से जन्म होता है

कविता का—-

 

इसकी अबाध गति में नहीं  है कोई बाधा

कविता के जन्म होते ही

सक्रिय होती है एक प्रतिगति

यही तो है अभिव्यक्ति —

 

इसी अभिव्यक्ति के

अस्तित्व और अनस्तित्व

के बीच,

एक अन्तराल है विशुद्ध सम्भावना का

एक क्षण है–

यही वह मनोभूमि है

जहां कविता अपने आप से

होती है आलोकित ।

 

इन्हीं संम्भावनाओं, भावनाओं और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करती कविताएं मेरे इस संग्रह में संकलित हैं।

             ~  डा मनोरमा शर्मा

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