Jagannath Kharate successfully participated in the Letter Writing Competition Organised By SGSH Publication.

प्रिय-
स्वयं मै…

मेरे परम मित्र,
कैसे हो?…
सब कुशल मंगल तो है ना…?‌यह सवाल सुनकर तुम अचरजमें पडे होंगे l सोचते होंगे कि जिंदगी में कभी नहीं पुछा ऐसा सवाल पहिली बार,अपने आप को क्यो पुछ रहे हो ?..
एकदम सही सोचते हो आप! कई बार जिंदगी की कठिन समस्याका हल सोचंते,सोचंते परेशान होता हु,तब मेरे अंतर्मन,तुमसेही प्रेरणा मिलती है ओर चुटकीमें समस्या का हल मिलता है l बहुतही समाधान मिलता है l
तभी मैने सोचा की तुम्हारा बडा एहसांंन है मुझपर! थोडाकुछ एहसांन चुका सकु ईसलिए आपसे कुछ प्यारभरी बाते करु l लेकीन,खत लिखु तो अच्छा होगा! मनको शांती मिलेगी,यह‌ सोचकर खत लिख रहा हुं l
मेरे प्रिय अंतरमन,मेरा बाहरी मन तो बडा सैतान है lबंदरकी तरह हमेशा ऊछंलकुद‌ करके, समस्या खडी कर देता है l हमेशा दुनिया की हर नई चिजोंकी मांगसे परेशान करता रहता हैl हमेशा नई,नई मुसिबते पैदा करता रहता हैl लेकीन, मै मजबुरन उसका सुनके तुम्हारी तरफ ध्यान ही नहीं दियाl तुम्हारा कभी सुना ही नही l फिरभी,तुमने बुरां नहीं मानाl तुम बहुतही
समझदार हो l हरसमय हरेक मुसिबतोसे लडनेके लिए हमेशा आत्मबल देते हो lतुम खुदमें इक बेमिसाल हो l इस निराशाभरी जिंदगीमे,हर कसौटीमें,जिंदगी की हर लडाई,लडनेकी शक्ति देकर जित हाशील कर देते हो l जिंदगीकें गहरे समंदरमें लहरोकी तुफानोंसे मेरी नैया सही पार लगा देते हो lहरेक
क्षण मेरे साथ होते हो l
ईश्वरने मुझे जन्म दिया है lवही ईश्वर,तुम्हारे अंदर समाकर हमेशां मेरे साथ रहते है l इस दुःखदर्दभरी दुनियांमे हर सुखदुःखमे तुम जैसा सच्चा साथी कोई नही l ईसलिये मै तुम्हारा सदाही एहसानमंद हुl

ईस जगतमें माॅबाप,भाईबहन आप्तेष्ट गरुरुजन,मित्रपरिवार सुखमे हात बटांते,लेकिन दुखमेंं सब लोग अकेला छोड चले जाते हैl यह दुनिया की सच्चाई है lलेकीन तुम कभी साथ छोडते नही,सदाही साथ रहते हो l कभी,कभी जिंदगीमें कुछ फैसले स्वयंको भी लेने होते है,तंभी मैं हडबडा जाता हु l लेकीन ऊसी समय तुम सही राह दिखाते हो l
मेरे परमप्रिय मित्र,इतना सबकुछ मदत करते होतेही तुमने मुझंसे कुछ मांगा नहीं, नाही,मुझसे कुछ,ऊम्मिद रखीl दुणियामे हरेक मनुष्यके अंदर होते भी सदा दुणियासे अलग रहनेवाले,हरेकके सुखदुःखमे हाथ बटानेवाले, निस्वार्थ सच्चे साथी सिर्फ तुमही हो.. उसके लिये मुझे तुमपर सदा गर्व हैl
ईस सब एहसान का ऋण कैसे चुकावु?ईसकेलिये मै तुम्हे कुछ दे नही सकता l लेकीन मैं तुम्हे वचन देता हुं कि “भविष्यमे मैं तुम्हे कभी भुलुंगा नहीं”सदा तुमने दिखाएं हुए मार्गपर चलुंगा, दुणियाकें हर ईन्सान के साथ ईन्सानियतकी तरह बर्ताव करुंगा lऔर सबकें काम आऊंगा l सिर्फ एक विनती है की,जबभी मै भटक जाउ तब, मेरे स्वयं अंतर्मन,तुम मुझे सदाही सच्चे मार्ग दिखाकर अच्छा मार्गदर्शन करे l उसके सिंवा और क्या लिखु? तुम्हे खत लिखके मेरा मन बहुतही हलका हो गया है,ईसलिए तुम्हारी लाख लाख शुक्रिया अदा करता हुं,और धन्यवाद देता हु l

तुम्हारा स्नेही
स्वयं…मैं……..

 

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