Description
जब मैंने 2023 में अपनी प्रथम पुस्तक “जीवन्त कर्मयोग“ लिखी। इस पुस्तक में मैंने स्वयं के जीवन की प्रमुख घटनाओं को विस्तृत रूप से बताने का प्रयास किया था। उसके बाद मुझे अहसास हुआ कि मुझे अपने बड़े भाई रमेश चन्द्र के जीवन की कथा भी सबको बताना चाहिए।
रमेश चन्द्र सक्सेना की जीवनी पढ़ कर आप समझ पायेंगे कि कैसे एक होनहार बालक का जीवन कैसे बर्बाद होता है और जीवन पर्यन्त वो संघर्ष करके भी अपने जीवन को सुखमय नहीं बना पाता।
उनकी जीवन यात्रा में उनके जीवन की वो दर्दनाक घटना जिसने उनके जीवन के रूख को बदल दिया था। जिस दिन इंजिनियरिंग कॉलेज, उदयपुर के प्रिंसिपल का तार मेरे पिताजी को बुलाने के लिए बूंदी आया था। यह कहने के लिए कि आप अपने बेटे को ले जाइए और इसका इलाज कराइए, ने मुझे मजबूर या कहूँ कि द्रवित कर दिया कि मैं अपने बड़े भाई रमेश चन्द्र के दुःखों को आपसे शेयर करूँ।
इस युवक की कथा पढ़कर आप स्वयं निर्णय ले कि ये दुःखों की लम्बी श्रृंखला उनके पिछले जन्म के संचित कर्म थे, जो इस जीवन में प्रारब्ध के रूप में प्रकट हो रहे थे, क्योंकि इस जीवन में तो उन्होनें कोई भी गलत काम नहीं किया था।
इस पुस्तक में आप पढ़ेंगे कि परिवार के पूरे सहयोग के बावजूद भी उनके प्रारब्ध को नहीं बदल पाए।
इस पुस्तक को लिखने का मात्र एक ही उद्देश्य है कि हम सब समझ पाऐ कि जीवन में होने वाली घटनाओं पर हमारा कोई अधिकार नहीं होता। प्रत्येक दुःख हमारे ही किसी दुष्कर्म का परिणाम होता है। हम सभी को अपने कर्मों पर ध्यान देना होगा। कर्म के सिद्धांत, अकाट्य होता है। हम सभी को अपने कर्म सुधारने का प्रयास आवश्यक रूप से करना चाहिए। जीवन में घटने वाली प्रत्येक घटना का साहस से सामना करें और हताश कभी न होएं।
इस पुस्तक प्रारब्ध में मैंने के सिद्धान्त पर जीवन पर्यन्त घटने वाली घटनाओं को एक नवयुवक के जीवन में घटने वाली घटनाओं से समझाने का प्रयास किया है।
उनके जीवन की घटनाओं की मीमांशा करते हुए मैंने पाया कि पुरूषार्थ से हम प्रारब्ध को किसी हद तक कम कर सकते हैं, उसकी तीव्रता को कम कर सकते हैं या उसकी दिशा मोड़ सकते हैं।
यह पुस्तक प्रत्येक उम्र के लिए प्रेरणा स्त्रोत होगी क्योंकि मैंने बचपन से अन्तिम समय तक की घटनाओं को परिभाषित किया है और प्रारब्ध के कर्म के प्रभाव को समझाकर उसे सरल करने का प्रयास किया है।
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