Description
नोयडा में ही जिलाधिकारी आवास के समीप एक स्थान जहाँ एक ओर एक वृक्ष के समीप एक दीवार पर बैनर लगा था – ‘ अपने को पहचानो! ‘ जिसमें ब्रह्मण्ड के चित्र के साथ एक युवती का चित्र मेडिटशन मुद्रा में था। उसी पर एक ओर लिखा था कि अपने प्रफुल्लित, उत्साहित मन से जुड़िए और तनाव, असंतुष्टि ,अशान्ति से मुक्त होइए!
अब सुबह के पांच बज रहे थे।
‘ निजता ‘ .. वृक्ष के नीचे बैठी थी।उसकी आंखें तो खुली थीं लेकिन वे सामने न देख कर नीचे थीं ।
मैं ‘ निजता ‘ हूँ।
मेरी फैमिली तो आत्मा तन्त्र है। जो परम् आत्माओं के घेरों से सुरक्षित है। मेरा वस्त्र वर्तमान में मेरा यह देह ही है जो कि पंच तत्व, प्राण, चेतना, अंतस ऊर्जा से कार्य करने की क्षमता पाती है। जो हमें प्राणाहुति व प्राणाहुति के बाद प्रसाद से प्राप्त होती है। जगत की हर वस्तु हमारे लिए उपलब्ध है।क्योंकि उसमें, हममें, सबमें एक ही अनन्त ऊर्जा प्रवाहित है।
हमारा समाज दिव्यता का वह कुम्भ(समुदाय ) है जो परस्पर सम है,सम+अज अर्थात दिव्यता के प्रभाव में हम जहां सम।
जगत में हो भी हमारी भौतिक निगाहें देख रहीं हैं-वह सब प्रकृति है। इस बीच जो बनावटी -जाति,मजहब, लोभ लालच, धर्म स्थल,विभिन्न समुदाय, विभिन्नता,मानव का निरा भौतिक विकास आदि है वह तो हमारे , जगत व ब्रहांड में चेतना के विस्तार के लिए घातक है।हम सबके हृदय परम् आत्माओं के हृदय से जुड़े हैं जिसके लिए हमारे जीवंत महापुरुष हमारे मददगार हैं। जिनके हृदय से हम सबके हृदय जुड़े हुए हैं। हम सबके हृदय में पहले से ही दिव्य प्रकाश मौजूद है।जहां हमारे जीवंत महापुरुष, परम् आत्माएं मौजूद हैं।
त्रिकाल, अनन्त काल, अनन्त यात्रा, अनन्त ऊर्जा के बीच वर्तमान की घटनाएं, दुःख दर्द, परेशानियां आदि तो क्षणिक हैं। जिनसे भागना नहीं है वरन उसमें जीते हुए हमें अपने अंतर जगत के स्वयम्भू, निरन्तर से जुड़ कर अपनी निजता में खोते हुए अपनी नैसर्गिक, प्राकृतिक, शाश्वत अनन्त दशा में डूब जाना है।
जिलाधिकारी आवास से दो बालिकाएं निकल कर बैडमिंटन खेलने लगी थीं।
सागर में कुम्भ, कुंभ में सागर! अंदर – बाहर …. ३६० अंश हर जो व्याप्त!! लेखक कहना चाहता है कि हमारी निजता का स्रोत जगत मूल है।उसी से हमारा निजत्व प्रकाशित है।उसके बिना यह देह लाश है।इसीलिए अपनी निजता में जिओ। हमारी निजता को स्वतंत्रता व जीवन में स्वस्थता बनाबटों में बसती हो ?जरूरी नहीं। स्व… तन्त्रता, स्व… स्थता ,स्व… आलम्बन,आत्म… निर्भरता आदि हमारी निजता में बसती है।
Reviews
There are no reviews yet.