Herpreet Singh successfully participated in the Letter Writing Competition Organised By SGSH Publication.

प्रिय हरप्रीत अटपटा लगा ना ये संबोधन पर अगर तुम खुद को ही प्रिय ना बोल सको ना मान सको तो फ़िर तुम्हारा प्रिय मैं किसे मानूं ? सबको प्रेम बांटती फिर रही पर तुम खुद उसी प्रेम के बिना कितनी अधूरी हो कभी सोचा क्या तुमने? हॉं मैं उसी सेल्फ लव की बात कर रही जो करने पर लोग तुम्हें स्वार्थी करार देंगे।पर जो तुम्हें इस उपाधि से नवाजेंगे दरअसल वह स्वयं इसी में डूबे हैं और उन्हें सिर्फ़ तुम चाहिए संपूर्ण सिर्फ़ उनकी परवाह करती हुई। पर जब तुम इस दुनिया से चली जाओगी तो चंद लम्हों में उनके जीवन से तुम्हारी आवश्यकता समाप्त हो जाएगी। इसलिए सबके लिए जीओ पर अपना अपने स्वास्थ्य और प्रसन्नता का भी ध्यान रखो, और हॉं एक बात और ये याद रखो कुछ बातें उम्र के साथ तजुर्बे के साथ ही समझ आती हैं पर कभी-कभी अपने से छोटे भी बहुत कुछ सीखा जाते हैं जैसे कि बेटा हमेशा बोलता है कि ठोकर खाकर क्यों सीखना जब किसी को लगी है वो सावधान कर रहा तो बात मान लो पर तुम पूरी बुद्धू हमेशा भावनाओं के बहाव में बह जाती हो तो अब उम्र के साथ ठहराव लाओ याद रखो अपने से बड़ों की बात आज नहीं तो कल सही लगती है तो गहराई से सोचो और अगर सही लगे तो मान लो और हॉं अगर छोटा ज्यादा समझदार लगे तो उसकी बात भी समझी बुद्धू! आशा है कुछ बदलाव अब जीवन के इस पड़ाव पर अवश्य लाओगी और सबके साथ अपने महत्व को भी पहचानोगी। तुम्हारी शुभचिंतक तुम्हारी अपनी ही परछाईं हरप्रीत

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