Description
प्रिय पाठकगण,
‘भजनम् भक्ति’ अर्थात् आराध्य का भजन भक्ति है। भजन भी ‘भज्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है ‘सेवा करना’। भजन रूपी सेवा शारीरिक से लेकर मानसिक तक है। इसमें नाम, गुण, लीला आदि का गान होता है।
निस्वार्थता, आत्म-समर्पण, संपूर्ण आस्था और विश्वास, मांग और इच्छा का अभाव, ईश्वरीय इच्छा के प्रति समर्पण, ईश्वर पर केंद्रित प्रेम – सच्ची भक्ति के कुछ मुख्य लक्षण हैं। ईश्वर की सच्ची भक्ति में बाह्य दिखावा नहीं होता, कोई आडंबर नहीं होता। धन-मान की कोई लालसा नहीं होती। सच्ची भक्ति में ईश्वर से अनन्य प्रेम होता है। कितना भी दान-पुण्य, जप-तप करो अगर अंदर ईश्वर के प्रति प्रेम और विश्वास नहीं है तो सब बेकार है।निरंतर परमात्मा को पाने में लगे इस ज्ञानी के लिए संसार में सबसे ज्यादा प्रिय परमात्मा ही होता है। प्रभु के अतिरिक्त इस ज्ञानी को और कुछ भी नहीं चाहिए। वह अपने भीतर परमात्मा को हर पल स्मरण करता रहता है। इस प्रकार निरंतर प्रभु को भजता हुआ यह ज्ञानी प्रभु का प्रिय बन जाता है
करीब एक वर्ष के अंतराल के बाद मेरी एक और पुस्तक ” अंजलि भर सुमन ” आप सभी के समक्ष प्रस्तुत है. इसमें मैं ईश्वर को अर्पित स्वरचित भजनों का संग्रह लेकर उपस्थित हुआ हूं. ईश के रुप, तत्व तथा अपने मन के भावों को गूंथ कर इस भजन माला की रचना की गई है . ईश कोई भी हो, यदि भक्त को सच्चा विश्वास है तो भजन आपको उस पराशक्ति से अवश्य जोड़ेगा. आशा है मेरी अन्य पुस्तकों की भांति इसे भी आप सभी का प्रेम तथा आशिर्वाद मिलेगा.
भजन संग्रह को लिखने तथा पुस्तक का रूप देने की प्रेरणा मुझे श्री सुर संगम काव्य गंग धारा साहित्य समूह की संस्थापिका आदरणीया श्री जी तथा माननीय सदस्यों के निरंतर प्रोत्साहन तथा उत्साहवर्धन के कारण ही मिली. समूह की आध्यात्मिक गतिविधियों में शामिल होने से मेरी सोच तथा लेखन शैली पर भी उचित प्रभाव पड़ा. इसके लिए मैं आप सभी का हृदय से आभार व धन्यवाद प्रकट करता हूं.
मेरे परिवार के सभी सदस्यों का योगदान भी मुझे हमेशा प्रेरित करता रहा.
आप सभी से इस प्रस्तुति की समीक्षा तथा टिप्पणियों की अपेक्षा लिए…
डॉ. सुनील शर्मा
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