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आखिर क्यों

Description

इस पुस्तक में कवयित्री ने अपने समाज और समकाल से संवाद कायम किया है तथा औरों के साथ अपने आप को बांटने की जरूरत पूरी करी है। मंजु ‘मन’ की कविता जिंदगी की धूप और छांव से गुजरती हुई, उसको हर रंग में जीती हुई, किसी तलाश में यात्रारत है, यानी उनकी कविता हमेशा धड़कती रहेगी। अन्य काव्य संग्रहों की तरह, उनके इस काव्य संग्रह में भी आपको आशावादिता दिखाई देगी | पहली ही कविता “बाहर कोरोना है” में वे कोरोना के बावजूद एक नया अरुणोदय देख पाती हैं | वह बाहर के मौसम को अखबारों या दूरदर्शन की आंखों से नहीं बल्कि अपने मन की आंखों से देखती हैं। और परिणाम स्वरूप वे शब्दों के रंगों से शब्द चित्र बनाती हैं। इन कविताओं में मंजु ‘मन’ की यह तकलीफ कि आदमी जितना मशीनों के करीब आता जा रहा है, उतना ही प्रकृति से दूर होता जा रहा है, दिखाई देती है | उनके इस संकलन में किसी महान व्यक्ति के निर्माण की गाथा भी है और बेटियों और उनसे जुडी परंपराओं पर विव्हल कर देने वाली कविताएँ भी हैं | मंजु ‘मन’ की कविताएं पथरीली और उबड़-खाबड़ जमीन पर बिना लड़खड़ाए हुए पैदल चलती हैं । इन कविताओं में सुख है, दुख है, प्यार है, झगड़ा है, फूल है, पौधे हैं, पेड़ है, पक्षी है, सुबह है, दोपहर है, शाम है, चांद है, सूरज है, लड़कियां हैं, लड़के हैं, आदमी है, औरतें हैं, मौसम है, – अपने सुंदर और भयंकर दोनों रूप में। इन कविताओं में अगर समाज अपनी पूरी बेशर्मी में अनावृत्त है तो उसमें भी जिंदगी को जीते हुए झुग्गी के बच्चे भी है; और पर्यावरण और जीवन दर्शन भी है। यानी जिंदगी के हर शेड्स मौजूद हैं । यह उनका तीसरा काव्य संकलन है और छठी पुस्तक है |

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