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और मैं चल पड़ी

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Description

लिखने का हमेशा से शौक रहा परंतु कभी स्वयं के साथ समय गुजारने का वक्त नहीं मिला, अंतर मन में बहुत कुछ चलता रहता था परंतु मन के भावों को अपनी कलम की स्याही से कागज़ पर उतरने का प्रयास करती थी।।

कविता मनुष्य होने का एहसास कराती है।

भावनाओं को व्यक्त करती है विचारों को सहेजती है ।।

मुझे संपर्क साहित्य संस्थान ने बहुत प्रेरित किया संस्थान के प्रत्येक सदस्य ने मेरा हौंसला बढ़ाया । उनके लिखे काव्य संग्रह द्वारा बहुत कुछ सीखने को मिला।

संस्थान के अध्यक्ष अनिल लढ़ा जी ने मेरी अभिरुचि को दिशा दी वही संस्थान महासचिव महोदया रेनू शब्द मुखर ने मेरी क्षमतानुसार मेरे कार्य अनुभवों को देखते हुए सानिध्य बनाए रखा ।।

सन 2018 से कविता को धरोहर रूप में स्वीकार करते हुए लिखना प्रारंभ किया।  28 वर्षों तक शिक्षालय से जुड़ाव रहा किताबों के सागर में शब्दों की बूंदों का महासागर मेरे सामने था बस सफर शुरू हो गया।।

मंच का सदा सम्मान करती आई हूं, उद्घोषिका का दायित्व निभाने के सुअवसर प्राप्त हुए बहुत सुधिजनों साहित्यकारों, पत्रकारों,प्रतिष्ठित साहित्य संस्थानों द्वार बहुत स्नेह और सकारात्मक विचारों का मार्गदर्शन मिलता रहा इसके लिए मैं अपने आपको भाग्यशाली मानती हूं।

यथार्थ घटित होते संस्करणों को कलम द्वारा कागज़ पर लिखना प्रारंभ किया। प्रत्येक रोज एक विद्यार्थी रूप में विद्यालय में प्रवेश करना रोचक रहता था प्रधानाध्यापिका पद पर होने के बावजूद भी रोज कुछ नया सीखने को मिलता था ।कविताओं को जरिया बनाते हुए लिखने का सफर जारी रहा और रखा है।।

प्रेरणा मिलती रही “मां “से उनका यह कहना रहा हमेशा जब भी मन खुश हो गमगीन हो, क्रोध में हो या सुकून में अपने मन की बात लिख डालो जब भी स्वयं अपना लिखा शब्द दोहराओगे नित कुछ नया सीखते जाओगे प्रेरित किया मेरे भाई और भाभी ने कठिन परिस्थिति में मेरे साथ रहे एक पल ऐसा नहीं लगा मैं अकेली हूं,दोनों बच्चों ने उनका यह कहना

” मां “आप अपनी उड़ान भरो हम हैं और बस

मैं चल पड़ी…………..।।

~ सीमा वालिया

1 Review for और मैं चल पड़ी

  1. 5 out of 5

    J K Gupta

    Great hobby n nice efforts. Best wishes for future success g. ,

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