Description
ग़ज़लकारा मनजीत शर्मा ‘मीरा’ के ग़ज़ल-संग्रह ‘‘गुल-ए-रुख़्सार का मौसम’’ से मैंने ये शे’र चुने हैं। ठंडी-ठंडी छाँव में बैठने का या आहिस्ता-आहिस्ता टहलने का आनंद तब आता है जब आप कड़ी धूप से बचने का प्रयास कर रहे हों। ग़ज़ल अपने आप में एक बहुत कोमल सा अहसास है। गुल-ए-रुख़्सार, मौसम, इश्क़-मुहब्बत, विरह-मिलन, चाँद, झील, गुल जैसे प्रतीक और बिंब ‘मीरा’ की ग़ज़लों में बहुतायत से मिलेंगे। इन कोमल संवेदनाओं के साथ-साथ अपनी ग़ज़लों में ‘मीरा’ ने जीवन के कठोर संघर्ष और स्याह पक्ष को भी उकेरा है।
‘‘साथ में कुत्तों के खाती थी वो सब की जूठनें
और मंडी में पड़ा था माल सड़ने के लिए’’
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