Description
हर घटना के पीछे चार स्थितियां होती हैं- बनाबटी, स्थूल, सूक्ष्म व कारण।
हमारी पसन्द -नापसन्द के कारण खड़ा हुआ हमारा इतिहास जरूरी नहीं प्रकृति अभियान, सूक्ष्म यात्रा, मानवता के क्रमिक विकास, अनन्त यात्रा, वर्तमान व अतीत के हमारे स्तर से ऊपर के अनन्त स्तरों की नजर में अनुकूल हो?
आज हम जहां पर खड़े हैं उसके पीछे हमारा अतीत है, हमारे पूर्वज व उनके व हमारे संस्कार हैं।
एक ब्रिटिश नागरिक कहता है कि जैसे कि हर वर्तमान में भारत के अंदर जीवंत महापुरुष हुए हैं, काश यदि उससे चौथाई भी यदि मेरे देश में होते तो बात ही कुछ और होती? हमारी गलती यह रही है कि हमने अपने समय के महापुरुषों की स्वीकार नहीं किया है ?अतीत के जो महापुरुष स्वीकार भी किए गये हैं, उन्हें सिर्फ ताख में सजा कर रख दिया गया है न कि उनसे प्रेरणा ली है।
‘ गोडसे का अफसोस ‘ – के नाम से हमने सन 1998 ई0 ,पुवायां (शाहजहांपुर) के मो0 कसभरा में प्रवास के दौरान जो लिखा है ,उसका सम्बन्ध हमारा इतिहास न होकर सिर्फ हमारे चिंतन, कल्पना से है।इस धरती पर ही हमारे नजदीक भी हमारे व अन्य वस्तुओं के कम से कम सात आयाम हैं जहां से हम अनन्त यात्रा तय कर सकते हैं।जिसके लिए शर्त यही है कि कुछ समय दुनियादारी व अपने देह को भुला कर अपने अंतरतम में खो जाना। जगत में हमें जो भी दिख रहा है, वह अनन्त स्तरों , अनेक काल खंडों में पसन्द-नापसन्द की स्थिति रखता है। निगेटिव तो हर स्तर का है, साइड डिफेक्ट होता है।
हमारी बनाबटों, जाति-मजहब, लोभ-लालच आदि से हट कर जो है शायद वही सत्य है? हम अपने हिसाब से किसी को नकार सकते हैं या अस्वीकार कर सकते हैं लेकिन हर कोई अपने हिसाब से अलग अलग स्तर का होता है, ऐसे में तुलना अनुचित भी हो सकती है। गांधी जिस स्तर को जिये हैं, हम उस स्तर पर जाकर उन्हें कैसे समझ सकते हैं?हम उन्हें अपने स्तर पर ही तो समझेंगे न ? उसी तरह गोडसे को भी ?हमारी सोंच से हटकर कोई प्रकृति का अभियान में अपना क्या बजूद रखता है?यह महत्वपूर्ण है। #अशोकबिन्दु
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