Description
तुलसी चौरे से’ सुश्री रंजीता जोशी द्वारा रचित कविताओं का संग्रह भूमिका लिखने के लिए मेरे हाथों में है। नाम पढ़ते ही मेरा मन एक अलग ही लोक में भ्रमण करने लगा है, जहाँ सजी संवरी अनेक नारियां हाथ में पूजा का थाल लिए एक बड़े से मकान के दालान के बीच बने तुलसी चौरे की परिक्रमा भजन गाते हुए कर रही हैं, आँगन में अगर की सुवासित गंध महक रही है और आँगन के एक तरफ कुछ बाल गोपाल अपनी मांओं को पूजा परिक्रमा करते एकटक निहार रहे हैं। यहाँ मुझे यह भी मालूम चला कि रंजीता जी के पिता श्री का नाम भी तुलसी दास गोस्वामी जी ही था और उन्होंने अपने प्रथम काव्य संग्रह का नाम उनके नाम पर रख कर न केवल अपने स्वर्गीय पिता को श्रद्धांजलि अर्पित की है बल्कि पाठक को भी पुस्तक खोलने से पहले ही उस आस्था लोक में पहुंचा दिया है जहाँ श्रृंगार रस की कविताएं भी राधा कृष्ण के अलौकिक प्रेम की याद दिलाती हैं।
आज के युग में हम देखते हैं कि पेरेंट्स अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस आदि बनाने के सपने देखते हैं, और अपने सपनों को साकार रूप देने में कोई कसर भी नहीं छोड़ते। कुछ लोगों के सपने सच हो जाते हैं, कुछ के सपने अधूरे रह जाते हैं जिनको वह फिर अपनी अगली पीढ़ी के माध्यम से पूरा करने का प्रयास करते हैं, इसी बात को अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अपने अधूरे सपनों को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करते जाते हैं। इसी संदर्भ में मुझे एक हिंदी कहावत याद आती है, मोर तो मंडे हुए ईश्वर के घर से ही आते हैं। यह इसलिए भी विशेष है कि डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी तो अच्छी परवरिश और प्रयासों से बनाए जा सकते हैं, लेकिन एक साहित्यकार को हम जीवन भर प्रयास कर के भी नहीं बना सकते और जब बात आती है कवि की, तो शायद साहित्यकार गद्य लिखने वाले फिर तैयार किए जा सकते हैं लेकिन किसी इंसान को एक कवि बनाना असंभव है।
मुझे इस कविता संग्रह की भूमिका लिखते हुए बहुत प्रसन्नता है कि मुझे सुश्री रंजीता जोशी को कवयित्री के रूप में जानने का अवसर मिला। जब मैं उनसे मिला और उनके रचना संसार को जाना तब ऊपर लिखी कहावत का औचित्य समझ आया कि मोर के बारे में जो कहा गया है वही एक कवि के बारे में भी समीचीन है और विशेषकर रंजीता जोशी के बारे में शत प्रतिशत सही उतरती है। उनकी सारी रचनाएं भावनाओं के स्तर पर, शब्द शिल्प पर और भाव संप्रेषण पर अनूठी है l
इनकी कविताएं न केवल मानव के उदात्त चरित्र को दिखलाती है बल्कि साथ में मानव के मन में भरे प्रेम और स्नेह के भावों का भी दिग्दर्शन बहुत अच्छे से कराती है। संग्रह की अनेक कविताएं श्रृंगार रस से ओतप्रोत है लेकिन उनको दुबारा से पढ़ने पर एक अलग ही रहस्यवादिता का संदर्भ नजर आता है। जीवन में घटित होते रोजमर्रा के घटना क्रमों और मानवीय स्वार्थ और त्याग दोनों के ही भाव इनकी कविताओं में बहुत प्रभावित करते हैं।
यह काव्य संग्रह इनका पहला काव्य संग्रह है, स्वांत: सुखाय से आम जन तक पहुंचने का पहला प्रयास है, मुझे विश्वास है कि यह काव्य संग्रह हिंदी साहित्य जगत में आधुनिक कविता के क्षेत्र में विशेष स्थान बनाएगी। इनकी कविताएं जितना नई पीढ़ी को पसंद आएंगी उतना ही पुरानी पीढ़ी भी उनके रहस्यवाद से प्रभावित होंगी।
मैं रंजीता जोशी को विशेष बधाइयां देता हूं; मेरी शुभकामनाएं उनके सुखी और दीर्घ रचनाशील जीवन के लिए कवयित्री के साथ हैं और आशा करता हूँ कि आगे भी इनके रचना शिल्प से हम सभी अवगत होते रहेंगे।
@ ‘राव’ शिवराज पाल सिंह, इनायती/जयपुर (वरिष्ठ साहित्यकार एवं सह संयोजक भारतीय सांस्कृतिक निधि करौली चैप्टर
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