Description
“वृंदा मंजरी”
प्रारम्भी नेह-
फूली वृंदा मंजरी सृष्टि से उपबंध है,
बिखेर रही मद-सी सुरभित सुगंध है,
ज्यौं महकती पूरित पूर्णिका,
बंधन में न इसके कोई बंध है,
विष्णुप्रिया से महके वन-उपवन,
भीनी-भीनी बिखर गयी सुगंध है,
पूजित वृंदा मंजरी अन्नंता,
प्रफुल्लित करती वृंदा निर्बंध है,
परिचयी नेह-
विस्तृत रुप अन्नंत आकाश सा “हेम”,
पूर्ण पूर्णिका दिग दिगंत धारे संबंध है।
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