बाग़ों में आ माहिया ( माहिया-संग्रह )

Description

जीवन एक कहानी है, कविता है, गीत है, ग़ज़ल है। जीवन यदि एक उपन्यास है तो माहिया नाम की एक सबसे छोटी कविता भी। एक ऐसा माहिया जिसके मात्र तीन मिसरों में हम अपने मन की बात कह सकते हैं। उससे भी बड़ी ख़ूबी कि गाकर कह सकते हैं। अपनी खुशी, अपना दुख, अपनी शिकायत सब बयाँ कर सकते हैं। माहिया जिसे पंजाबी में “टप्पा” भी कहते हैं की लोकप्रियता का कारण इसकी मधुर लय ही है जो हमें अपनी ओर आकर्षित करती है। यह विधा कब और कैसे प्रचलन में आई इसका कोई पुष्ट प्रमाणिक साक्ष्य और समय तो नहीं मिलता लेकिन लोक सूक्ति के अनुसार इस विधा को लोकप्रिय बनाने में दो प्रेमियों “बालो और माही” का ज़िक्र ज़रूर मिलता है। कहते हैं यह प्रेमी जोड़ा टप्पों द्वारा एक दूसरे से वार्तलाप किया करता था वैसे ही जैसे कहमुकरी के द्वारा दो सहेलियाँ अपने मन की बात पहेली के रूप में करती हैं।

 

“बाग़ों में आ माहिया” अपने माहिया से मिलने की प्रेमिका की पुकार भर नहीं है बल्कि वह यह भी दिखाना चाहती है कि देखो बाग़ों में कितने सुंदर फूल खिले हुए हैं। चारों ओर हरियाली है। कोयल चहक रही है और मोर नृत्य कर रहे हैं। ठंडी बयार चल रही है। सारी की सारी फ़ज़ा रंगीन है तो क्यों ना हम ऐसे ख़ूबसूरत माहौल में प्यार के कुछ पल एक-दूसरे के साथ बिताएँ। बचपन से ही मैं भी सुनती आ रही हूँ ये ख़ूबसूरत माहिया कभी मंगल गीत गातीं महिलाओं द्वारा ढोलक की थाप पर तो कभी शादी-ब्याह में होते गिद्दे पर। कभी बैसाखी, लोहड़ी जैसे त्योहारों पर तो कभी सखी सहेलियों की टोली में । माहिया की धुन, इसका संगीत इतना सुरीला है कि बरबस ही सीधा रूह में भीतर तक उतर जाता है। क्या होती है तीन लाइनों की कविता यह कोई माहिया से सीखे।

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