Description
बापू सही कहते थे, “भारत की आत्मा गाँवों में बसती है,” लेकिन क्या वह गाँव अब भी जीवित हैं जिनमें भारत की आत्मा बसती है? क्या वे नगरीकरण के भेंट चढ़ गए हैं? या वहाँ संस्कृति का ह्रास होने से नष्ट हो गए हैं? या गाँवों से सामाजिक सौहार्द खत्म हो गया है? सवाल बहुत से हैं, लेकिन जवाब किसी के पास नहीं। हाँ, यह कह सकते हैं कि अब भी कुछ गाँव बचे हुए हैं जिनमें गाँव बने रहने की योग्यता बची हुई है। और ऐसे गाँव ज्यादातर प्रकृति की गोद में बसे हैं।ऐसे गाँव और वहाँ के लोगों तक पहुंचना आसान तो है, लेकिन लोगों में उन तक जाने की इच्छाशक्ति मर चुकी है।
नौजवान शहर आए और नशे की लत ने उन्हें खा लिया।कितनों को मंजिल मिली, इसका कोई हिसाब नहीं। बहुत से नौजवानों को नशे की लत जरूर दी है शहर ने, लेकिन यह बात कहने में भी परहेज नहीं करनी चाहिए कि शहर ने कुछ नौजवानों को मंजिल भी दी है। “मंजिल का रास्ता गाँव से होकर ही तो गुजरता है” या यूं कहें कि गाँव मंजिल तक पहुंचाने की पहली सीढ़ी होती है।
जो लोग शहर में रहते हैं, न जाने गाँव के बारे में क्या-क्या सोचते हैं। एक समाज जो मुख्यधारा से कटा हुआ है और सिर्फ इस बात पर जीवन गुजार रहा है कि बस “आज का खाना मिल जाए।” शिक्षा और स्वास्थ्य की हालत उतनी ही बुरी है जितने 1990 में देश के आर्थिक हालात।
सुधार की शुरुआत कहाँ से होगी? कौन इसकी पहल करेगा? किन लोगों के साथ सामंजस्य स्थापित किया जाएगा? कौन सी रणनीतियों पर काम किया जाएगा? किन लोगों को इसमें शामिल किया जाएगा? हम क्या बदलाव चाहते हैं, इसका पूरा खाका तैयार तो कर लिया जाता है, पर वह खाका सिर्फ कागज पर ही रह जाता है, उसे पूरा करना हर किसी के बस की बात नहीं।
कहते हैं, इंसान को कभी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।
सुबह के सूरज की किरण अपने साथ नई उम्मीद भी लेकर आती है।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं:
“यदा यदा हि धर्मस्य,
ग्लानिः भवति भारत,
अभ्युत्थानम् अधर्मस्य,
तदा आत्मानं सृजामि अहं।।”
श्रीमद्भागवत गीता के इस श्लोक पर विचार करें तो हम पाते हैं कि जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब भगवान अपने रूप को रचित करते हैं। साधुओं का उद्धार करते हैं, पापियों का नाश करते हैं और पुनः धर्म की स्थापना करते हैं। मैं इस श्लोक को इस तरह से देखता हूँ कि धर्म की हानि होने का मतलब है उन चीजों का ह्रास होना, जिनसे इस मानव सभ्यता का उत्थान संभव है। और अगर उन चीजों का ह्रास होता रहेगा, तो मानव सभ्यता का नाश होगा और भगवान फिर अपने रूप में आकर उस सभ्यता को पुनः स्थापित करेंगे। जैसे अगर किसी ने वन और वन्य प्राणियों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की, तो पर्यावरण प्रेमी अपनी सूझबूझ, कानून और नीतियों का सहारा लेकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले को दंड देने का काम करेंगे । इस प्रकार भगवान अन्य रूप में आकर गाँव की संस्कृति को बनाए रखने और भाईचारे को बढ़ाने के लिए किसी न किसी को जरूर चुनते हैं। और वही इंसान प्रकृति की गोद में बसे गाँव को पृथक पहचान, सुखमय वातावरण और अपार शांति दे जाता है।
किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि कोई गाँव अपने अंदर ऐसा जादू भी रख सकता है, जिससे वह लोगों को इस मनुष्य रूप में पैदा होने का उद्देश्य समझा सके। संघर्ष कहाँ नहीं होता? गाँव में भी होता है और जंगल में उन जानवरों के बीच भी अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष चलता रहता है। प्रकृति को महसूस करने वाले स्थान में रहकर उसी को सारी धन-सम्पत्ति मान लेना एक हद तक ठीक भी है, लेकिन कुछ लोगों के नसीब में यह भी नहीं होता।
“आदिवासियों को भारत का मुकुट कहा जाता है।” अपनी संस्कृति, भाषा शैली, और जीवन पद्धति को बनाए रखने और उसे आने वाली पीढ़ियों को सौंप देने की कला इन्हें बहुत अच्छे से आती है। जनजातीय समाज अपने साथ एक पूरी विरासत लेकर चलता है। चाहे वह गोंड हो, बैगा हो, भील हो या सहरिया। पर शायद हम महाराणा प्रताप के साथ भीलों के योगदान को भूल गए हैं। ऐसे ही अन्य जातियों के योगदान और उनकी विरासतों को भी हम भूलते जा रहे हैं। हमें इन क्षेत्रों तक जाकर इनसे बातचीत करनी चाहिए और उनके उत्थान के मार्ग तलाशने का एक प्रयास करना चाहिए।
भारत विविधता में एकता वाला देश है। इसके एक स्तर आगे जाकर अगर हम विविधता पक्ष पर विचार करें, तो हमें इसका प्रामाणिक उदाहरण ग्रामीण इलाकों में मिलता है। “वन, वन्य प्राणी और ग्रामीण बस्ती में समन्वय भी विविधता में एकता का एक उदाहरण है।”
सही कहते हैं अदम गोंडवी जी,
“जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिजाज,
उस युवा पीढ़ी के चेहरे पर हताशा देखिए।”
लोग परिस्थितियों से लड़ना भूल गए हैं और जीना भी। इसी लड़ने और जीने के तरीकों को देखने और सीखने के लिए गाँव और जंगल जरूर जाएं। मुझे यह नहीं पता कि आपको यहाँ मज़ा आता है या नहीं, आपके सवालों के जवाब मिलते हैं या नहीं, लेकिन इसकी गारंटी जरूर है कि आपको “आप” जरूर मिलेंगे। और फिर,
“आपकी कल्पनाएँ अपार संभावनाओं को जन्म देंगी और आपकी अपार संभावनाएँ उन कल्पनाओं को यथार्थ करने का रास्ता बनेंगी।”
पी. नवीन कुमार
Richa
Wow its looks like very interesting story