Description
यादों के उन लम्हों को मैं समेट रही हूं
जामे में लफ्जों के नेह से लपेट रही हूं
सिमटी हुई यादों के बिखर जाए न वे पल
सहेजने को मैं कागज में अब लपेट रही हूं
उपन्यास ‘वामाक्षी के अनुस्मृतियां’ एक ऐसी कहानी है, जिसमें नायिका वामाक्षी अपनी स्मृतियों का पुनरावलोकन करते हुए उन्हें अपने शब्दों में बयान करती है । लेखिका गीता रस्तोगी ‘गीतांजलि’ का जन्म 26 जुलाई 1968 को गाजियाबाद में माता श्रीमती राममूर्ति देवी व पिता श्री हरिचंद गुप्ता जी के घर पर हुआ । ये कैमिस्ट्री से परास्नातक व शिक्षा शास्त्र से स्नातक हैं । अध्यापन के एक लंबे अनुभव के बाद जब इन्होंने कलम उठाई, तब विज्ञान, हिंदी व अंग्रेजी साहित्य में उल्लेखनीय कार्य किया । इनका बालकथा संग्रह ‘भोलू का सतरंगी इंद्रधनुष’ मूलत: हिंदी में है व अंग्रेजी, इटालियन, फ्रेंच, जर्मनी, स्पैनिश, थाई व फिलिपिनो भाषाओं में अनूदित है । इटली के बोलोग्ना चिल्ड्रन फेयर में भागीदारी के लिए इन्हें इस पुस्तक के लिए पुरस्कार भी प्राप्त हुआ । इनका एक हिंदी उपन्यास ‘कनक कनक ते सौ गुनी’ भी प्रकाशित है । इन्हें नव उदय साहित्यकार सम्मान 2024 से भी नवाजा गया । समय-समय पर साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में इनके गीत, कहानियां, लेख आदि प्रकाशित होते रहते हैं ।
Komal Ahuja
जब मैंने ‘वामाक्षी की अनुस्मृतियां’ पढ़ना शुरू किया, तो ऐसा लगा जैसे मैं अपने ही जीवन के पन्नों को पलट रही हूँ। गीता रस्तोगी ‘गीतांजलि’ ने जिस तरह से इस उपन्यास को लिखा है, वह बहुत ही आत्मीय और भावुक कर देने वाला है। किताब के हर पन्ने पर वामाक्षी की यादें जैसे मुझे अपने बचपन के पलों में वापस ले जा रही थीं। एक लड़की के रूप में, मैं वामाक्षी की भावनाओं और उसकी स्मृतियों से खुद को बेहद जुड़ा हुआ महसूस कर रही थी।
‘वामाक्षी की अनुस्मृतियां’ एक ऐसी कहानी है, जो केवल वामाक्षी के बचपन की यादों पर आधारित नहीं है, बल्कि यह हर उस इंसान की कहानी है जिसने कभी अपने बचपन को याद किया हो। बचपन, जिसे हम सब बेहद प्यार करते हैं, लेकिन जब वह बीत जाता है तो बस यादें ही रह जाती हैं। इस उपन्यास के हर अध्याय में, वामाक्षी अपने जीवन के उन पलों को साझा करती है जो उसे सबसे ज्यादा प्रिय थे। जैसे-जैसे मैं कहानी में आगे बढ़ती गई, मेरे मन में भी अपने बचपन की यादें ताज़ा हो गईं।
गीता रस्तोगी ‘गीतांजलि’ ने बचपन की भावनाओं को इतनी सजीवता से उकेरा है कि मैं खुद को वामाक्षी की यादों में डूबा हुआ महसूस करने लगी। उनकी भाषा सरल, लेकिन दिल को छू लेने वाली है, जिससे हर पाठक आसानी से इस कहानी से जुड़ जाता है।
अगर आपको अपना बचपन याद करना अच्छा लगता है और आप उन दिनों को फिर से महसूस करना चाहते हैं, तो यह किताब आपके लिए एक बेहतरीन साथी साबित होगी। इसमें केवल बचपन की खुशियों को ही नहीं, बल्कि जीवन के उन अनमोल पलों को भी शामिल किया गया है, जो हमें जीवन भर प्रेरणा देते हैं। इस उपन्यास को पढ़कर आपको महसूस होगा कि बचपन की यादें केवल यादें नहीं होतीं, वे हमें हमारे आज का सामना करने का साहस देती हैं। यह किताब हमें यह समझने में मदद करती है कि हम सभी की ज़िंदगी में बचपन की यादें कितनी महत्वपूर्ण होती हैं और हमें उन्हें संजोकर रखना चाहिए।
‘वामाक्षी की अनुस्मृतियां’ सिर्फ एक उपन्यास नहीं, बल्कि बचपन के खोए हुए पलों को फिर से जीने का एक अनुभव है। यह किताब मुझे बेहद पसंद आई और मुझे यकीन है कि इसे पढ़ने के बाद आपके मन में भी अपने बचपन की यादें ताज़ा हो जाएंगी। अगर आप भी उन पलों को महसूस करना चाहते हैं, तो इस किताब को ज़रूर पढ़ें। यह पुस्तक आपको हंसाएगी, रुलाएगी और आपको आपके अपने जीवन की अनमोल यादों से फिर से जोड़ देगी।