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सतगुरु कथा व सतगुरु भेद

Description

प्रात: स्मरणीय परम पूज्य संत द्वारकादास जी महाराज, ग्राम बादली (गुलिया), जिला रोहतक, हरियाणा के निवासी थे। उन्होंने सभी संतों की शिक्षा का सार अनुभूत कर आत्म-साक्षात्कार किया | वे गृहस्थ में रहते हुए भी सन्यस्त समान ओजस्वी थे। उन्होंने इस युग के अनेक जीवों का उद्धार किया । वे एक पूर्ण संत थे और हर समय प्रभु के भजन में लीन रहते थे। उनका कहना था कि वे न ही गुरु हैं, न संत हैं न साध हैं। वे खुद को प्रभु का दास मानते थे। उन्होंने किसी से पूजा भेंट, चढ़ावा, कभी नहीं लिया। उन्हें संतों की सेवा का शौक था। संतों के सानिध्य से तथा स्वाध्याय से उन्होंने सतगुरु का ज्ञान प्राप्त किया तथा उसका मनन किया जिसे उन्होंने अपनी पुस्तकों में लिखा है ताकि सभी सत्संगी इसका लाभ उठा सकें।

उन्हीं से प्राप्त, उन्हीं को समर्पित ।

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