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समय की स्लेट पर

Description

इस पुस्तक में शामिल बहुत सारी रचनाएँ समय-समय पर विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं वेब पोर्टल, ब्लॉग्स व ई-मैग्जिन्स वगैरह में प्रकाशित होती रही हैं। और अब, जबकि विभिन्न समय अन्तराल व मनःस्थिति में लिखी ये कविताएँ यहाँ पुस्तक के रूप में उपलब्ध हो रही हैं। मैं यह बता देना चाहूँगा कि पिछले अठारह-बीस वर्षों में लिखी इन कविताओं का इस पुस्तक में आरम्भ से आगे की ओर जैसा कोई निश्चित क्रम नहीं है। पुस्तक में शामिल पहली कविता- “समय की स्लेट पर कविता” मेरी पहली कविता भी नहीं है। पुस्तक में इसे पहला स्थान इसलिए मिला कि अपने कविता संकलन के लिए ये नाम मुझे बहुत पहले ही पसंद आ गया था। चूँकि साहित्य का स्वाद बचपन से ही भा गया था। इसी दौरान तुकबंदी की लत लगी। संभवतः आठवीं या नौवीं कक्षा से, सो पहली कविता कौन सी लिखी, कैसी रही, अब कहाँ है…यह कह पाना खुद मेरे लिए भी बहुत मुश्किल है। बहुत और भरपूर संभावना है कि तब के किसी क्लास नोट बुक के किसी पन्ने में दबी पड़ी हो मेरी पहली कविता. मेरी कई पुरानी और शुरुआती कवितायें तो पुरानी डायरी से मिली, जिनमें से कुछ कवितायें थोड़े फेरबदल के साथ इस पुस्तक में जहाँ-तहाँ शामिल हैं, जिसे पढ़कर सामान्य पाठक भी अंदाजा लगा लेगा कि ये कवि की शुरुआती रचनाएँ हैं ।

मैं उस पीढ़ी से हूँ, जो लम्बे समय तक स्लेट पर लिखते हुए बड़ी हुई है। मुझे अच्छी तरह याद है। स्कूल में तो पांचवीं कक्षा तक, मगर घर पर आठवीं कक्षा तक स्लेट का उपयोग ‘रफ वर्क’ के लिए किया करता था। क्या पता पहली कविता स्लेट पर ही लिखी और उस समय के नाम दर्ज हो गई हो। कुछ इस लिए भी पुस्तक का नाम: समय के स्लेट पर……!

फ़िलहाल, पुस्तक की पृष्ठभूमि स्वरुप इतना ही। ये कविताएँ तीन हिस्से में हैं – ‘अभिव्यक्ति’ खंड के तहत ज्यादातर लंबी कविताएं हैं तो ‘बयान’ खंड में ‘छोटे-छोटे ख्याल छोटी-छोटी कविताएँ मिलेंगीं। ‘रू-ब-रू मेरे’ को आप ग़ज़ल मान सकते हैं । यदि  शास्त्रीयता- छंद -मीटर आदि को लेकर बहुत रूढ़ न हो तो।

अंतत: पुस्तक प्रारूप में सारी रचनाएँ, अब आपके हवाले हैं। स्वयं अपनी कविताओं पर किसी तरह की टीका-टिप्पणी या स्पष्टीकरण कवि-धर्म के अनुकूल नहीं। यह दायित्व मैं पाठक-श्रोता-आलोचक जन को देता हूँ ।

“तेरा तुझको सौंपता, क्या लागे है मोर / मेरा मुझ में कुछ नाहीं, जो होवत सो तोर” पुस्तक के सृजन-निर्माण-और प्रकाशन में जिनका भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रेरणा – प्रभाव व सहयोग रहा, सबका बहुत – बहुत आभार! पाठक-श्रोता-आलोचक व विद्वतजन की टिप्पणियों व प्रतिक्रिया के लिए ऋणी रहूंगा!

सादर !!

डॉ. कुंदन सिंह

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