Description
कविताएँ हमारे मन की अनुभूतियों, संवेदनाओं सुख-दुख के अहसासात को काग़ज़ पर उतारने का ज़रिया हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि कविताओं के द्वारा हम अपने भीतर के अंतर्द्वंद को क़लम और स्याही के साथ काग़ज़ पर उतारकर हल्का कर सकते हैं। कविताएँ हमें एहसास दिलाती हैं कि हम अपने मन की बात किसी से कह रहे हैं, बाँट रहे हैं। आपके अपने मन की बात में यदि पाठक के मन की बात भी निहित हो तो सोने पर सुहागा। कविताएँ कम से कम दो रूपों में तो लिखी जाती ही रही हैं…छंद बद्ध कविताएँ और मुक्त छंद की कविताएँ। एक विशेष छंद-विधान के तहत मात्रिक और वर्णिक छंद में कविताएँ लिखी जाती हैं। मुक्त छंद कविता में किसी छंद विधान को अपनाए बिना ही कविता के मर्म को छूना होता है लेकिन इस मुक्त छंद में भी सुर-ताल, लय और तुकांत का समावेश होना ज़रूरी है क्योंकि तुकांत काव्य का मूल प्राण है। कहने का अर्थ है कि कविता बेशक मुक्त छंद में ही लिखी जा रही हो लेकिन उसमें काव्य रस और सार तत्व का होना बहुत ज़रूरी है वरना तो वह नितांत पद्य जैसी ही कोई चीज़ बन जाएगी। छंद मुक्त कविता का अर्थ छंद से मुक्त होना कदापि नहीं बल्कि छंद जैसे सुरीले एहसास को अपने काव्य कौशल से कविता में लेकर आना है।इसलिए कुछ कविताओं को सुर-ताल देने के लिए मैंने तुकांत का भी इस्तेमाल किया है जिससे इन कविताओं की ख़ूबसूरती और बढ़ गई है।
अपने पूर्व के कविता संग्रह में मैंने छंद बद्ध और मुक्त छंद की लंबी कविताएँ तो लिखी हैं लेकिन मुक्त छंद में कभी विशेष रूप से लघु कविताएँ नहीं लिखीं। लघुकथा होती है यह तो मुझे मालूम था क्योंकि लघु कथाओं पर मेरा लघुकथा संग्रह “ख़बर है कि…” प्रकाशित हो चुका है लेकिन काव्य में लघु कविता नाम से भी कोई विधा होती है यह मालूम नहीं था। तो जब आदरणीय डॉ. रूप देवगुण साहब का सिरसा से फोन आया और उन्होंने मुझसे इस विधा से जुड़ने का आग्रह किया तो मैंने इसे सहर्ष निःसंकोच स्वीकार कर लिया। वैसे भी चुनौतियाँ स्वीकार करना मुझे पसंद है। मज़ेदार बात यह है कि ये सभी कविताएँ मैंने एक महीने में लिख भी दीं जो अब पुस्तक रूप में आप सब के सामने आ रही हैं। मुझे इस मुहिम में शामिल करने के लिए मैं आदरणीय डॉ. रूप देवगुण साहब का शुक्रिया अदा करती हूँ।
लघु कविता के लिए कोई एक निश्चित परिभाषा अभी तक नहीं दी गई है। मेरे विचार में सभी कवियों का मत इस बारे में भिन्न-भिन्न ही होगा। हाँ, इस बात को स्वीकार किया जा सकता है कि लघु कविता के लिए अधिकतम दस पंक्तियाँ तय कर दी जाएँ। वैसे ही जैसे जापानी कविता हाइकु और ताँका में हम तीन और पाँच पंक्तियों में एक सारगर्भित लघु कविता और गीत लिखते हैं। लेकिन इन दस पंक्तियों में अधिकतम शब्द कितने होने चाहिएँ यह बात भी विचारणीय है। प्रश्न यह भी पैदा होता है कि लघु कविता के लिए केवल दस पंक्तियाँ ही क्यों छ:, सात, आठ या नौ पंक्तियाँ क्यों नहीं….?हाँ,इसमें यह हो सकता है कि अधिकतम निर्धारित दस पंक्तियों में से यदि आप अपनी बात कम पंक्तियों में भी कह सकते हैं तो अति उत्तम। इसमें कवि को अपनी समझ के अनुसार एक छूट मिल जाएगी। वैसे ही जैसे एक लघु कथा में कुछ शब्द कम-बढ़ हो जाते हैं क्योंकि लघु कथा के शब्दों की सीमा लेखक स्वयं अपने विवेक से ही निर्धारित करता है।
लघु कविता लिखने की चुनौतियों के बारे में मैं इतना ही कहूंगी कि इसमें ऐसे शब्दों को कोई स्थान न दिया जाए जिनके बिना भी कविता का काव्य भाव अपने आप में पूर्ण होता हो। साथ ही सिर्फ़ दस पंक्तियाँ ही न लिख दी जाएँ बल्कि आपकी लघु कविता में कोई न कोई संदेश होना भी बहुत ज़रूरी है। ऐसा न हो कि ये पता ही न चले कि आपने यह लघु कविता लिखी क्यों थी?इसको लिखने का उद्देश्य क्या था? यदि लघु कविता का प्रत्येक शब्द कुछ न कुछ उद्देश्य रखता है तो ऐसी स्थिति में ही आप गागर में सागर भर सकते हैं। कविता की भाषा सहज, सरल और स्पष्ट होनी चाहिए। क्योंकि लघु कविता अपने आप में ही किसी विचार का एक सार होता है।मेरे लिए यह कोई नया प्रयोग है ऐसा तो मैं नहीं कहना चाहूंगी क्योंकि मैंने मुक्त छंद की कविताएँ पहले भी लिखी हैं। फिलहाल मैंने अपनी किताबों की जाँच की तो देखा कि इनमें से कुछ कविताएँ छ: से लेकर बारह पंक्तियों तक की भी हैं। हाँ, यह बात अलग है कि लघु कविता लेखन की इस मुहिम से जुड़ने का मौका मुझे मिला क्योंकि इस संग्रह में मेरी सभी कविताएँ लघु कविताएँ ही हैं।
इन कविताओं को लिखते हुए मैंने एक विषय चुना है। जैसे माँ, पापा, औरत, खिड़की, काग़ज़, दफ़्तर, जंगल आदि-आदि और उसी एक विषय पर दस-दस कविताएँ लिखी हैं। माँ, पापा, औरत, खिड़की, काग़ज़, दफ़्तर, पर्यावरण, इंसानियत, प्रेम पर लिखी कविताएँ मेरी मनपसंद कविताएँ हैं।
“तुलसी, चंदन, पीपल तुम
गंगा का पावन जल तुम
ईश्वर का अवतार हो माँ।”
“पापा…
तुम्हारा ख्याल रखना ही
बता जाता है हमें
तुम्हारी नज़रों में हमारी अहमियत।”
“मैं बनाऊँगी
धरा को स्वच्छ-सुंदर
पेड़ों से लिपटेंगी फिर बेलों की झालर।”
“तुलसी मैया की पूजा से
हमको मिला सुकून
और हमारे दिल की खुशियाँ
बढ़कर हो गईं दून।“
और इस संग्रह की शीर्षक कविता…
“जागना देर रात तक
काग़ज़ के बिछौने पर।”
मैं माँ सरस्वती का शुक्रिया अदा करती हूँ कि उनका आशीर्वाद मुझे हमेशा मिलता रहा है। अपने मम्मी-पापा का शुक्रिया अदा करती हूँ कि उन्होंने मुझे भावनाओं की वो दौलत बक्शी जिसे मैं जब-तब “काग़ज़के बिछौने पर“ उतारती रहती हूँ। इसके अतिरिक्त अपने दोनों बेटों स्वप्निल और अनुभव के साथ-साथ दोनों बहुएँ योगिता चौधरी और बिंदु शर्माजिसे हम सब प्यार से नेहा कहते हैं की भी शुक्रगुजार हूँ कि उनका स्नेह और उत्साहवर्धन हमेशा मुझे हिम्मत देता है।खुशी की बात है कि नेहा ने इस किताब का बहुत ही खूबसूरत सा आवरण-पृष्ठ भी बनाया है।
मैं कुमार शर्मा ‘अनिल’ जो स्वयं एक बहुत ही अच्छे कवि, नाटककार, व्यंग्यकार, कहानीकार हैं का ह्रदय से धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ कि उन्होंने इस पुस्तक के लिए भी बहुत ही ख़ूबसूरत सी प्रस्तावना लिखी है और साथ ही मुझे लेखन के लिए प्रोत्साहित भी किया। इसके साथ ही मैं प्रिय सखी लतिका चौधरी जी (पिंकी) और आदरणीय भाई साहब निर्मल चौधरी जी, IFS और अपनी सभी सखी-सहेलियों का जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में मेरा उत्साहवर्धन किया, हृदय से शुक्रिया अदा करती हूँ।
और अंत में मैं शुक्रगुज़ार हूँ Publisher,Kitab Writing Publication, Mumbai की जिन्होंने बिना किसी त्रुटि के बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ लघु कविताओं की इस किताब को प्रकाशित करने का जिम्मा लिया है।
मेरे लघु कविता संग्रह “काग़ज़ के बिछौने पर” में कुल 125 लघु कविताएँ हैं।मेराप्रयास कैसा रहा इसके लिए पाठकों की प्रतिक्रियाओं का हमेशा की तरह ही बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
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