प्रिय मैं,
थोडा सा अजीब लग रहा है, ऐसे तो आजकल हमारी बात सबसे ज्यादा हो रही है लेकिन उसे कभी कागज पर उतरने का ख्याल नहीं आया. अब तुम्हे एक ख़त लिख रहा हूँ तो कितना अलग लग रहा है, एक मुस्कुराहट है चेहरे पर . हंसी भी आ रही है कि जिसे ख़त लिखने बैठा हूँ वही मेरे साथ बैठा एक-एक अक्षर पढ़ भी रहा है, इस ख़त में मै जो निजता चाह रहा हूँ वह कैसे ले आऊं? लिखने और पढने वाला साथ ही बैठा है हाँ ये बड़ा रोमांचक लग रहा है. तुम्हे किस नाम से बुलाऊ वैसे कभी सोचा नहीं आइने में देखते हुए कभी महसूस ही नहीं हुआ की तुमसे यानी अपने से ही बात करते हुए एक अलग नाम की जरुरत है .
26 साल 6 महीने और कुछ दिन की हमरी यात्रा जो आगे बढ़ रही है कितनी बातें हैं कितनी यादें हैं कितनी ही ऐसे लम्हे जिसे केवल मैंने तुमसे कहे हैं क्योंकि सबसे ज्यादा भरोसा मै तुमपर ही करता हूँ. बहुत मुश्किल हो रहा है स्मृतियों का एक पहाड़ सामने आ खड़ा हुआ है इस ख़त में क्या लिखूं किसे छोडूं कहाँ से शुरू करूँ समझ नहीं आ रहा. हा अब तुम्हे ख़त लिखना है और ख़त में कुछ ऐसा ही लिखा जा सकता है जो पाने वाले को पता न हो लेकिन यहां तो हर बात में तुम हो.
कुछ एक पल तो ऐसे जरुर हैं जिनको लेकर मुझे शिकायत हो सकती है, या कहूँ शिकायत है खुद से यानी तुमसे हाँ इस ख़त में एक दो शिकायत ही लिख देता हूँ. अब देखो नाराज मत होना कहोगे पहला ही ख़त भेजा उसमे भी शिकायत, क्या करूँ दोस्त.. देखो पहली शिकायत तो यही है की जब हम हर सुबह ये तय करते हैं पूरा दिन खुश रहेंगे तो क्यों शाम ढलते-ढलते तुम भी ढलने लगते हो और फिर मोबाइल की स्क्रीन में बेचारी आँखों को गोते लगाने के लिए भेजकर कभी इन्स्टाग्राम फिर व्हाट्सअप फिर टेलीग्राम के खाली इनबॉक्स को टटोलने लगते हो. स्क्रीन के सागर में गोते लगाये हुए जब आँखों की साँसे फूल जाती है तो तुम फिर यूट्यूब के घाट पर बैठकर रील स्क्रॉल करने लगते हो, मै समझ रहा हूँ ये पढ़ते हुए तुम्हे बुरा लगेगा और कहोगे ये क्या दुखड़ा रोने लगा जबकि उस समय पूरा आनंद तो मै भी लेता हूँ. सही है लेकिन यार कभी अगर तुम मेरी जगह होकर सोचोगे तो जानोगे कि, सबसे ज्यादा अकेला मै उन्ही पलों में महसूस करता हूँ , जब तुम पूरी ललक के साथ किसी अनजान प्रोफाइल को hii.. लिखते हो और निरुत्तर रहकर उदास होते हो तब तुमसे ज्यादा मै दुखी होता हूँ, ये थोड़ा भवनात्मक हो गया, लेकिन सच्चाई यही है दोस्त.
सोचो अगर इतनी ही शिद्दत से हमने खुद से बात की होती तो आज ख़त में शिकायत न लिखता, जितने ही पल खुद को अकेला और कमजोर महसूस करने में हम बिता देते हैं उतने ही पल में हम कुछ बेहतरीन कर सकते है कुछ उपयोगी. मैं भी ख़त में क्या उपदेश देने लगा तुम्हें, सच कहूँ तुम्हे पहली शिकायत लिखते हुए ही मुझे लगने लगा है ..बुरा जो देखन मैं चला… अब दूसरी और तीसरी शिकायत नहीं लिखूंगा कहीं तुम मेरा ख़त गुस्से में फाड़ न दो . और सही है इन दिनों हम कुछ तलाश तो रहे हैं लेकिन अभी सब धुंधला सा है … जिंदगी में आगे कई प्रश्न हैं जिनके जवाब हम दोनों को ही तलाशने हैं अब शिकायती लहजा अपनाने से किसीका फायदा नहीं. ये निराशा , ये उदासी, ये भारी शामें किसीकी प्रश्नभरी तो किसीकी उपहास से उठती निगाहें सबका जवाब हमें साथ ही तलाशना है. अभी बहुत सी शिकायतें होंगी बहुत सी अनबन होगी लेकिन जैसे अब तक हम साथ में कुछ मुश्किलों को जीतकर तो कुछ को बाइपास कर आगे बढ़ते आये हैं ..आगे भी बढ़ेंगे . ये पहला ख़त जवाब लिखना इंतजार रहेगा …|
तुम्हारा सबसे प्रिय
मैं.
हिमांश धर द्विवेदी
July 28, 2024 - 4:25 pm ·वाह कविवर! बहुत अच्छा लिखे हो। स्वयं से संवाद करना कितना ज़रूरी हो गया है आज के दौर में। बधाई!
टंकण के समय वर्तनी की कुछेक अशुद्धियाँ रह गयी हैं, जिसे ठीक किया जा सकता है।
एक दिन खुद को अपने पास बिठाया हमने
पहले यार बनाया फिर समझाया हमने (शारिक़ कैफ़ी साहब)