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नेताजी : इन सेकंड वर्ल्ड वॉर…?!

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लेखक का कहना है कि वह अपने जीवन में 100+ पुस्तकें लिख चुके हैं। यह पुस्तक – ‘ नेताजी इन सेंकण्ड वर्ल्ड वॉर ..?! ‘ के माध्यम से लेखक का सिर्फ अपनी कल्पनाओं, अहसासों,चिंतन ,सपनों,जिज्ञासाओं  आदि को ही  अभिव्यक्त करना है।

नेता जी इन सेकंड वर्ल्ड वार..?!,सर तन से जुदा?!, वो राम भवन ?!, देशाटन,1983 ई0 !!, 21 अक्टूबर ?!,हूँ !बड़े लोग ?!, सन 1926 – 45 ई0 ?!,कलि साम्राज्य ?!,
भविष्य त्रिपाठी ?!,बयालीस ..?! स्पेस एक्स ?! ,सन 1945 ई0 ?!, क्रांति क्या ?क्यों ?!, वो आत्मा ..?!,गांधार ..?!, वो सत्रह युवतियां ?!, गोल्डन जोन ?!,क्षमा बनाम प्रायश्चित?!,अन्नतासुर ..?!,वो राष्टपिता क्यों?!, अरे, क्या बेहोश हो?!,जहां न पहुंचा रवि..?!, नौकरी..!?, मनमान..?!,वर्ल्ड विलेन ?!,अंसार ..?!धर्म में तो हो नहीं..?!, छुट्टी कैसी ?, तरंगों  से नपती दूरियां?!, चाबहार..?!,अमेरिका से ..?!, दिल्ली चलो!!…आदि शीर्षकों के माध्यम से लेखक ने अपने आध्यात्मिक, वैश्विक, सूक्ष्म जगतिय अहसासों के साथ साथ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस से सम्बन्धी कुछ तथ्यों को अपने हिसाब से रखा है।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नेता जी सुभाषचंद्र बोस दक्षिण पूर्व एशिया में एक नायक बन कर उभरे थे।इस पुस्तक में दिखाया गया है कि सन 1926 -45 ई0 का समय एक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण था जो वास्तव में ब्रह्मण्ड चेतना को प्रभावित करने वाला था। दक्षिण पूर्व एशिया विशेष कर असम, अरुणाचल, भारत से सटी चीन देश की सीमा पर अनेक सूक्ष्म शरीरों व उन शरीरों के समूहों की हरकतें महसूस की जा सकती हैं। इसी तरह देश के अंदर व  बाहर विश्व मे अनेक स्थानों पर सूक्ष्म शरीरों सम्बन्धी अहसास किए जा सकते है।इस बहाने नकारात्मक ऊर्जा को भी महसूस किया जा सकता है। अनेक स्थान अब भी  पुरातत्वविदों, पर्यटकों, फ़िल्म मेकरों आदि के लिए विशेष ऊर्जा, नकरात्मक शक्तियों आदि का अहसास कराते हैं।  वहीं दूसरी ओर कुछ इलाके ऐसे हैं जहां इधर उधर कुछ सन्त , असमान्य व्यक्ति नजर आ जाते हैं। जिनके आसपास अनेक सूक्ष्म शरीर या सूक्ष्म शरीरों के समूह जगत कल्याण  का भाव रखते हैं। चीन, म्यामांर, बांग्ला देश की सीमा पर अनेक रहस्य उन्हें महसूस होते हैं जो वास्तव में अपने सूक्ष्म शरीर के माध्यम से अन्य सूक्ष्म शरीरों के अहसास की कृपा रखते हैं। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस व 21 अक्टूबर 1943 ई0 को  स्थापित  आजाद हिंद सरकार के अधिकारी व सिपाही के सूक्ष्म शरीर अब भी आगामी उन हालातों का इंतजार कर रहे हैं जो कि उनके अनुकूल हों? ब्रिटिश शासन के विरोध में जो संघर्ष करते शहीद हो गये उनके सूक्ष्म शरीर अब भी अरुणाचल, असम के जंगलों में कुछ लोगों के द्वारा महसूस किए जा सकते हैं।उनके समूह ,उन समूह के हर सूक्ष्म शरीर के अन्य सूक्ष्म शरीरों से सम्पर्क, इससे बनते उस क्षेत्र में ऊर्जात्मक ,चेतनात्मक हालात क्या भविष्य में प्रकृति अभियान ,किसी बड़े विराट चेतना की हरकत में क्या बड़ी भूमिका में आने वाले हैं?

लेखक स्वयं इस मामले में अदभुत, रहस्यमयी ,असाधारण लगता है।अन्य मनुष्यों से हट कर  अकथनीय स्तर का दिखता है।क्या वास्तव में जो नयन देखते हैं, बुद्धि जो समझती है उससे हटकर दुनिया में कुछ है जो कि उपनयन है। जो सिर्फ महसूस किया जा सकता है?जैसे देह तो दिखती है लेकिन इस देह को जिंदा रखने, हरकत में रखने वाले कारण नहीं दिखते उसी तरह क्या जगत के कारण नहीं दिखते?इस देह ,इस जगत की आड़ में ऐसा कुछ है जो कि नयन देखते नहीं, बुद्धि समझती नहीं लेकिन उसे हमारे अंदर की स्थिति महसूस कर सकती है लेकिन सब के साथ ऐसा सम्भव नहीं है?इस बीच यह भी संदेश मिलते रहे हैं नेता जी सुभाषचंद्र बोस तृतीय विश्व युद्ध में फिर वापस आएंगे?इसमें कितनी सच्चाई है?किसी का भौतिक शरीर कितने वर्ष जिंदा रह सकता है? जो जिंदा  रहते जिन्द जगत से जुड़ चुका है अर्थात अपने अन्तस् के मूल कारण से जुड़ चुका है,वह जिंदा है।सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु 1945 में हो चुकी थी। 2025 तक, उनकी आयु 128 वर्ष होनी चाहिए, जो मानव जीवन की सामान्य सीमा से कहीं अधिक है। इसलिए, उनके भौतिक रूप में वापस आने की संभावना वैज्ञानिक रूप से असंभव मानी जाती है लेकिन भारतीय दर्शन में यह सम्भव है।कुछ लोग यह मानते हैं कि सुभाषचंद्र बोस जैसे महान व्यक्तित्व “आध्यात्मिक रूप” में या किसी अन्य रूप में देश की रक्षा के लिए लौट सकते हैं। यह विश्वास व्यक्तिगत आस्था पर आधारित है, न कि तथ्यों पर। इस तरह के विश्वासों को सत्यापित करना संभव नहीं है। लेकिन इसे कोई महसूस कर रहा हो ,तो इसे क्या कहेंगे?मानव शरीर की औसत आयु 70-80 वर्ष होती है, हालांकि कुछ लोग स्वस्थ जीवनशैली और चिकित्सा सुविधाओं के कारण 100 वर्ष या उससे अधिक जीवित रह सकते हैं। अब तक का सबसे अधिक उम्र का सत्यापित रिकॉर्ड जीन कैलमंट (Jeanne Calment) का है, जो 122 वर्ष (1875-1997) तक जीवित रहीं।मानव शरीर की कोशिकाएँ समय के साथ क्षय होती हैं (सेलुलर एजिंग), और टेलोमियर्स (chromosomes के सिरों पर मौजूद संरचनाएँ) छोटे होते जाते हैं, जिससे उम्र बढ़ने की प्रक्रिया अपरिहार्य है। वैज्ञानिक अभी तक इस प्रक्रिया को पूरी तरह उलट नहीं पाए हैं।भविष्य में स्टेम सेल थेरेपी, जेनेटिक इंजीनियरिंग, या अन्य तकनीकों से आयु बढ़ाने की संभावना हो सकती है, लेकिन 128 वर्ष की आयु 2025 की तकनीक से असंभव है।

भारतीय दर्शन में यह सम्भव है।कुछ लोग यह मानते हैं कि सुभाषचंद्र बोस जैसे महान व्यक्तित्व “आध्यात्मिक रूप” में या किसी अन्य रूप में देश की रक्षा के लिए लौट सकते हैं। यह विश्वास व्यक्तिगत आस्था पर आधारित है, न कि तथ्यों पर। इस तरह के विश्वासों को सत्यापित करना संभव नहीं है। लेकिन इसे कोई महसूस कर रहा हो ,तो इसे क्या कहेंगे?

सुभाषचंद्र बोस के तृतीय विश्व युद्ध में भौतिक रूप से वापस आने की बात वैज्ञानिक रूप से असंभव और ऐतिहासिक रूप से असमर्थित है। यह अधिकतर लोककथाओं या आस्था का हिस्सा है।मानव शरीर की आयु सीमित है, और 128 वर्ष की उम्र तक जीवित रहना असंभव है।बोस का प्रभाव और प्रेरणा आज भी जीवित है, और इस अर्थ में वे “जिंद जगत” में अमर हैं। अतीत में कोई मरने के बाद फिर जिंदा होकर आया हो?यह सुनना हो सकता है लेकिन वर्तमान में कोई ऐसा वाक्या नहीं है कि कोई मरने के बाद जिंदा हुआ हो?

यह उस स्थिति में हुआ है जब उसके देह अभी सुरक्षित है और उस देह में पुनः जान आ गयी हो लेकिन जिसकी देह भी जल कर दफन कर दी गयी हो वह सूक्ष्म शरीर से तो आ सकता है लेकिन उस तरह के अन्य देह में कैसे ?भारतीय दर्शन में कुछ लोग इस पर तर्क देते हैं कि एक तंत्र विद्या ऐसी है जिसमें कि किसी की आत्मा अपनी देह त्याग कर दूसरी देह में प्रवेश कर कार्य कर सकती है ।लेकिन यह नेताजी सुभाष चंद बोस के लिए कैसे सिद्ध हो सकता है?लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने काया कल्प विद्या सीखी थी अर्थात दूसरी देह धारण करने की विद्या। इस तरह से कुछ लोग मानते हैं कि नेता जी तृतीय विश्व युद्ध में फिर लौटेगें।

झांसी का किला …

जहां बुजुर्ग विश्व मित्र अलक्षेन्द्र की पांच रातें वहां के सूक्ष्म शरीरों के बीच गुजर चुकी थीं।

…इस तरह पांच रात तक विश्व मित्र अलक्षेन्द्र आंख बंद कर प्रक्रियाओं से गुजरता रहा।

” अब हम सब  चलते हैं – द्वितीय विश्व युद्ध की ओर! जिस बीच दक्षिण पूर्व एशिया में नायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस। हम बता दें कि इस समय हम सब सन 2043 ई0 में जी रहे हैं। 21 अक्टूबर 1943 ई0 को स्थापित  होने वाले आजाद हिंद सरकार के 100 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। सन 1857 ई0 के समय से आगे बढिए। ”

छठवें  दिन किलें में ही एक स्थान पर तंबू आदि लग चुके थे।मंच सज चुका था।

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