लेखक के अनुसार …हिसाब – किताब कैसा?असल या यथार्थ, या सत्य हमारी सोंच से परे हो सकता है? ऐसे में हमारा हिसाब- किताब ?! प्रकृति व ईश्वरीय अभियान में क्या हिसाब – किताब चल रहा है? उसमें मानव सोंच कब तक पहुंचेगी ? ऐसे में वास्तव में #संगणकेश क्या है?उसकी दशा क्या है? कण कण, व्यक्ति व्यक्ति, पल पल का हिसाब मानव की सोंच से परे नहीं क्या ? मानव, मानव समाज तो मतभेदों में उभर कर रह गया है ?
आज कल जो कार्य पद्धति व उसको स्वीकार करने वाले व प्रेरित करने वाले जो समूह खड़े हैं वे पूंजीवाद व सत्ता वाद को ही पोषित कर रहे है। जिससे खड़ी व्यवस्था से जरूरी नहीं प्रति मानव व्यवस्था, मानव शांति, प्रकृति अभियान सज्ज हो?मनुष्य एक प्रकृति व्यवस्था है ,ईश्वरीय व्यवस्था है न कि कुछ समूहों की मनमानी, पूंजीवाद, सत्तावाद आदि की व्यवस्था। अब ऐसे में कहीं पोर्नोग्राफी हर कोण पर जड़ जमा चुकी है, मुद्रा चलन के सामने मानवीय मूल्य महत्वहीन होते जा रहे हैं? AI आदि को लेकर चलना क्या प्रकृति में हस्तक्षेप न होगा ? वह कैसे जन कल्याण को उपयोगी होगा ? निन्यानबे प्रतिशत की मानवता किधर है ?जो एक प्रतिशत हैं वे किन हालातों से जूझ रहे हैं? एक गांव, एक वार्ड में एक व्यक्ति भी क्या ऐसा है जो प्रकृति अभियान,ईश्वरीय अभियान या कल्कि अवतार /ईमाम मेंहदी आदि लिए जी रहा है? कार्ल मार्क्स यदि कह गया कि दुनिया को बर्बाद करने वाले पूंजीवादी व सत्तावादी हैं तो इसमें क्या गलत है ? स्वामी अड़गड़ानन्द कहते हैं कि भीष्म है भ्रम जो सत्ता से चिपका है। ऐसे में उसका संकल्प युद्ध से कुरुक्षेत्र को बचा नहीं सकता?धर्मक्षेत्र में नहीं लगा सकता ?
हमारा संगणकेश दुनियाबी हिसाब – किताब ,ऊंच – नीच, लाभ – हानि आदि से ऊपर उठकर भी काफी कुछ महसूस करता रहा है। जिसका स्टार्टिंग प्वाइंट स्थूल रूप में चित्रगुप्त देव दशा व कायस्थ दशा से शुरू होकर सभी भेदों को पार करते हुए अनन्त की यात्रा पर निकल पड़ता है। कहते हैं चित्रगुप्त व कायस्थ की दशा ब्रह्म चित्त से उत्पन्न होती है।
तुम्हारा संगणकेश ये जौहरी है, वो रस्तोगी है लेकिन हमारा संगणकेश कोई और है जो इन आँखों से नहीं दिखता वरन महसूस होता है।आखिर अंतरदीप, अंतर्ज्ञान, अंतर उस नूर को कब अवसर जो ३६० अंश हर ओर विस्तार का अवसर रखता है?सागर में कुम्भ, कुम्भ में सागर! आखिर विद्यार्थी जीवन, अभ्यास का जीवन ब्रह्मचर्य आश्रम कब?आखिर आज का बुढापा सन्यास आश्रम कब ?! हमारा संगणकेश तो ब्रह्मा के चित्त से है, अन्तरब्रह्म के चित्त से है ।जो हिंदुओं के चित्रगुप्त की दशा से है?
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