वैदिक काल से चली आ रही ‘ शिष्य गुरु परम्परा ‘ को आगे बढ़ने का अवसर समय समय पर तेज होता रहा है।सिक्ख होना तो एक क्रांति है,शिष्य होना तो एक क्रांति है।जो भीड़ को नहीं चुनती वरन गुरु के संदेशों को चुनती है। अपने आराध्य के सन्देशों को चुनती है।
लेखक स्वयं एक शिक्षक है, वह एक स्तर पर कुछ लोगों को प्रेरित भी करता है। गुरु व शिष्य तो दो तन एक मन होते हैं।हमारा मन जिसमें रमा होता है, उस रमने के विषय को जहां से प्रेरणा मिलती है, वह गुरु है।कहने से क्या कि आप हमारे गुरु हो?
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