यह यात्रा-वृतांत जीवन और प्रकृति के उस अद्भुत मिलन का परिचय है, जहाँ मनुष्य स्वयं से संवाद करता है। यात्रा केवल स्थानांतरण नहीं होती वह अनुभव, संवेदना और आत्मबोध की ऐसी प्रक्रिया है, जो व्यक्ति को बाहर से भीतर की ओर ले जाती है। जब कोई व्यक्ति यात्रा पर निकलता है, तो वह केवल भूगोल नहीं नापता, वह अपने मन के नक्शे पर नई रेखाएँ खींचता है। इस वृतांत की प्रेरणा भी उसी गहन अनुभूति से उपजी है, जहाँ हर कदम एक नई सीख और हर ठहराव एक नई कहानी बनकर उभरता है।
मनुष्य जन्म से ही यात्री रहा है-कभी ज्ञान की खोज में, कभी सुख की, कभी मुक्ति की, तो कभी केवल अपने आप को समझने के लिए। यात्रा में चलना भले शरीर का कार्य होता है, पर इस चलन की असली दिशा मन तय करता है। इसी कारण इस वृतांत में लिखी यात्रा केवल मार्गों, पर्वतों, वादियों और नदियों का वर्णन नहीं करती, बल्कि उस आंतरिक यात्रा को भी उजागर करती है, जो हर यात्री अपने भीतर चुपचाप करता है। यहाँ दृश्य और अदृश्य दोनों समानांतर चलते हैं एक बाहरी संसार जो आँखों से दिखता है, और दूसरा भीतरी संसार जो केवल अनुभवों से जाना जाता है।
इस पुस्तक का उद्देश्य केवल किसी स्थान के पर्यटन या भौगोलिक स्वरूप को प्रस्तुत करना नहीं है। यह उन बारीक क्षणों को पकड़ने का प्रयास है, जब कोई दृश्य भीतर तक उतर जाता है।





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