A Heartfelt Tribute: Dr. Yamini Malhotra’s Story Dedicated to Her Late Mother, Smt. Poonam Malhotra
माँ, तुम्हारी लड़ाई मेरी जीत बनी

शुरुआत: 8 मार्च 2010 – जब ज़िंदगी बदल गई
8 मार्च 2010, दिल्ली के अपोलो अस्पताल की कैंसर डिपार्टमेंट की लाइब्रेरी। एक साधारण दिन जो हमारी ज़िंदगी में भूचाल बनकर आया। मेरी माँ, पूनम मल्होत्रा, जिनकी हंसी और गर्मजोशी से हमारा घर रोशन रहता था, उन्हें स्टेज-3 ब्रेस्ट कैंसर होने की खबर मिली। हम दोनों—माँ और बेटी—वहां बैठे थे, किताबों से भरी उस लाइब्रेरी में, लेकिन उस दिन शब्द भी बेअसर लग रहे थे।
“माँ, ये हमारे साथ ही क्यों?” मैंने माँ से रोते हुए पूछा।
माँ भी रोईं, बहुत रोईं, लेकिन फिर अपने आँसू पोंछते हुए बोलीं, “यामिनी, ये लड़ाई हमारी है, हारने का सवाल ही नहीं उठता।”
कैंसर से जंग: दर्द, इलाज और उम्मीद
इसके बाद का सफर आसान नहीं था—तीन बड़ी सर्जरी, 20 से 25 कीमोथेरेपी, 45 दिन रेडिएशन, इम्यूनोथेरेपी, जैनेटिक टार्गेटेड सेल थेरेपी, फिजियोथेरेपी, होम्योपैथी, और आयुर्वेद—हर संभव इलाज किया, हर मुमकिन दरवाजा खटखटाया।
कीमोथेरेपी के बाद माँ के घने काले बाल झड़ गए, चेहरा पीला पड़ गया, शरीर कमजोर हो गया, लेकिन हिम्मत? वो कभी कमजोर नहीं पड़ी। माँ ने हर दर्द को सहा, हर मुश्किल को जिया, लेकिन हमें कभी निराश नहीं होने दिया।
उनकी एक बात हमेशा याद रहेगी—”जीना है, रोकर नहीं, मुस्कुराकर।”
हर लम्हा जिया, हर खुशी मनाई
कैंसर ने भले ही शरीर पर कब्जा कर लिया था, लेकिन हमारी खुशियों पर नहीं। हमने हर त्योहार, हर छोटी-बड़ी खुशी को मनाने का संकल्प लिया।
जन्माष्टमी पर माँ ने कृष्ण की मूर्ति को खुद सजाया।
बर्थडे पर हमेशा केक काटा, चाहे सेहत कैसी भी हो।
मदर्स डे पर मैंने उन्हें हाथ से बना ग्रीटिंग कार्ड दिया, जिसमें लिखा था—”माँ, तुम मेरी ताकत हो।”
वुमन्स डे पर माँ ने कहा, “हर महिला को लड़ना आना चाहिए, चाहे दुश्मन कोई भी हो—कैंसर या समाज।”
माँ ने हमें ज़िंदगी जीने का तरीका सिखाया।
21 मई 2013: माँ चली गईं, लेकिन उनका हौसला रह गया
21 मई 2013 की सुबह माँ के चेहरे पर एक अलग ही शांति थी। उन्होंने मुझे पास बुलाया और कहा, “यामिनी, अब तुम्हें रोना नहीं है, तुम्हें जीना है और अपने परिवार को जीना सिखाना है।”
उनके अलमारी में हमें उनके अंतिम संस्कार के पैसे रखे मिले। उन्होंने अपनी मौत को भी प्लान कर रखा था ताकि हम किसी परेशानी में न पड़ें। माँ आखिरी समय तक हमें सिखाती रहीं—जीवन की सच्चाई, आत्मनिर्भरता, और हिम्मत।
यामिनी मल्होत्रा से डॉ. यामिनी मल्होत्रा तक
माँ तो चली गईं, लेकिन मेरी लड़ाई जारी रही। जो कैंसर सेल्स मेरी माँ को खा गए थे, मैंने उन्हीं कैंसर सेल्स को मारने की कसम खाई।
पूरे 10 साल लगे, लेकिन मैंने अपनी कैंसर की दवा बनाई, और सबसे पहले टेस्टिंग में उन्हीं कैंसर सेल्स को मारा, जो कभी मेरी माँ के शरीर में थे।
माँ हार गई थीं, लेकिन उनकी बेटी जीत गई।
ये सिर्फ मेरी नहीं, ये हर उस बेटी की कहानी है, जो अपनी माँ की लड़ाई को अपनी ताकत बना लेती है।
एक कविता: माँ की याद में
माँ, तुम्हारी हिम्मत मेरी ताकत बनी,
तुम्हारी सीख मेरी आदत बनी।
जो लड़ाई तुमने अधूरी छोड़ी थी,
उसे मैंने अपना मकसद बना लिया।
अब हर कदम पर तेरा साया है,
तेरी ममता ने ही मुझे बनाया है।1
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