SPREAD GOODNESS
SPREAD HAPPINESS

SPREAD GOODNESS
SPREAD HAPPINESS

Dr. Shama Afroze Baig’s Heartfelt Mother’s Day Tribute to Mrs. Qamar Salaha Baig

शीर्षक: मेरी माँमेरी ख़ामोश ताक़त

डॉ. शमा अफ़रोज़ बेग –  विभागाध्यक्ष माइक्रोबायोलॉजीस्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय हुडको , भिलाई, छत्तीसगढ़

“तुमसे नहीं होगा।”

यह वाक्य मैंने बचपन से लेकर जवानी तक कई बार सुना—रिश्तेदारों से, पड़ोसियों से, समाज से। लेकिन एक इंसान था जिसने कभी ये शब्द नहीं कहे—मेरी माँ

मैं एक मुस्लिम परिवार से आती हूँ। हमारे समाज में लड़कियों के सपनों को अक्सर उनकी उम्र, इज़्ज़त और शादी के नाम पर सीमित कर दिया जाता है। लेकिन मेरी माँ ने कभी मेरे सपनों को कैद नहीं किया। उन्होंने मुझे उड़ना सिखाया—बिना पंखों के।

12th के बाद जब मैंने B.Sc. करने की इच्छा जताई, तो घर के बाहर के लोग तरह-तरह  की बातें करने लगे। “कॉलेज भेजना ज़रूरी है क्या?” “अब शादी की उम्र हो रही है,” “लड़कियों को ज़्यादा पढ़ा देने से नुकसान होता है।” ये बातें माँ के कानों में ज़रूर गईं, लेकिन उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आई।

माँ हर सुबह मेरा टिफिन तैयार करतीं, पापा कपड़े प्रेस करते।  अम्मी ने हमेशा मेरा साथ दिया। पापा खुद सीमित आमदनी में काम करते थे, लेकिन मेरी पढ़ाई के लिए उन्होंने कभी न नहीं कहा। उन्होंने अपनी ज़रूरतें पीछे रख दीं ताकि मेरी पढ़ाई मे बाधा ना हो ।

कॉलेज का सफर आसान नहीं था। घर से कॉलेज तो पास  था, पर सफर लंबा था, और डगर कठिन। कई बार थक कर लौटती, तो माँ बिना कुछ पूछे मेरे सामने गर्म खाना रख देतीं। पापा कहते, “थोड़ी थकान है तो क्या हुआ? थकान वहीं आती है जहाँ मंज़िल बड़ी हो।”

नई चुनौतियाँ

M.Sc. की पढ़ाई के लिए दाख़िला लेना मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी, क्युकी जो मुझे पढ़ना था वह विश्वविद्यालय में ही होता था। अब बातें और भी तेज़ होने लगीं—“अब तो बहुत हो गया,” “अब शादी कर दो,” “इतनी पढ़ाई किस काम की?” लेकिन माँ और पापा ने एक शब्द नहीं कहा—बस मेरा एडमिशन फॉर्म भर दिया।

अब पैसों की तंगी महसूस होने लगी थी। एक दिन मैंने माँ को चुपचाप अपने गहने निकालते देखा। मैंने पूछा, “क्या कर रही हो माँ?” उन्होंने मुस्कराकर कहा, “एक ज़रूरत है, कुछ समय के लिए देना पड़ रहा है।” बाद में पता चला कि उन्होंने मेरी लैब किट और सेमेस्टर फीस के लिए अपने कंगन गिरवी रखे थे।

मैं स्तब्ध थी। माँ की आँखों में आँसू नहीं थे, बस विश्वास था—मेरे ऊपर, मेरी मेहनत पर।

पापा ने भी ऑफिस में ओवरटाइम करना शुरू कर दिया था, जिससे मेरी किताबों का खर्च निकल सके। उन्होंने कभी शिकायत नहीं की, सिर्फ एक बात हमेशा कहते—“तू बस मेहनत कर, बाक़ी सब हम देख लेंगे।”

Ph.D. का सफर

मैंने 1993 में एमएससी करते करते ही गेट उत्तीर्ण किया ,Ph.D. का सफर मेरे लिए सबसे कठिन था। मुझे यूजीसी स्कॉलरशिप मिलने लगी। पढ़ाई गहरी थी, रिसर्च कठिन था, और समाज का दबाव सबसे ज़्यादा था। मेरी उम्र बढ़ रही थी, और हर दूसरे दिन कोई रिश्ता लेकर आ जाता था। “अब तक पढ़ रही हो?” “कब तक टालोगी शादी?”—इन सवालों ने मानसिक रूप से थका दिया था। रिसर्च में कई बार असफलता मिली। एक हफ्ते में तीन एक्सपेरिमेंट फेल हो गए। एक रात मैं घर आकर फूट-फूट कर रोने लगी। माँ मेरे पास आईं, चुपचाप मेरे बाल सहलाने लगीं। फिर धीरे से कहा,अगर अब हार मान ली, तो लोग कहेंगे कि वे सही थे। क्या तू उन्हें सही साबित करना चाहती है?”

उस एक वाक्य ने जैसे मेरे अंदर नई ऊर्जा भर दी। मैंने फिर से कोशिश की, और इस बार सफलता मिली। पापा ने अपने जीवन की सबसे बड़ी पूंजी—मेरा आत्मविश्वास—मुझमें बोया था। उन्होंने कभी मुझसे नहीं पूछा, “Ph.D. कब खत्म होगी?” बल्कि कहा—”जब तू पूरी तसल्ली से अपना काम खत्म कर ले, तब ही सफलता सच्ची लगेगी।”

1997 में मुझे एम.पी.युवा वैज्ञानिक पुरस्कार मिला ।  पापा ने बस मेरे माथे को चूमा और कहा, “देखा, अल्लाह ने मेहनत का फल दिया।” उनके चेहरे की मुस्कान मेरे लिए दुनिया की सबसे बड़ी दौलत थी। अम्मी  की आँखों में आँसू थे—खुशी के। उन्होंने मेरे बचपन की यादों को थाम कर मुझे गले लगाया और कहा, “हमने तुझे रोकने के लिए नहीं, उड़ाने के लिए पाला था।”

सपनों की मंज़िल

कई वर्षों की मेहनत, नींद से भरी रातें, बिना त्योहार की छुट्टियाँ—all of it came together when I was selected as a Assistant Professor of Microbiology.

जब मुझे माइक्रोबायोलॉजी  प्रोफेसर की नौकरी मिली, वो दिन मेरी जीत का नहीं था—वो दिन मेरे माँ-पापा के विश्वास की जीत थी।पापा बाहर खड़े थे। वह कुछ नहीं बोले, लेकिन शाम को मैंने उन्हें मोहल्ले के एक अंकल से कहते सुना, “मेरी बेटी अब प्रोफेसर बन गई है।” माँ ने मुझे दुआदी —”ख़ुदा तुझे बुलंदियों तक ले जाए,”
और पापा ने कहा—”तू मेरी सबसे बड़ी कामयाबी है।”

माँ और पापादो मजबूत दीवारें

मेरी माँ वो दीवार थीं जिन्होंने हर बाहरी चोट को रोका, और पापा वो ज़मीन थे जिस पर मैं मज़बूती से खड़ी हो सकी। माँ की चुप्पी में शक्ति थी, और पापा के स्नेह में विश्वास। दोनों ने मिलकर मुझे वो आधार दिया जिससे मैं खुद को पहचान सकी।

उन दोनों ने कभी मेरे सपनों को नहीं रोका। उन्होंने मुझे ये समझाया कि एक लड़की का सपना उसका अधिकार है, कोई एहसान नहीं।

मदर्स डे पर मेरा समर्पण

आज मैं जब स्टूडेंट्स को पढ़ाती हूँ, उन्हें रिसर्च के लिए प्रेरित करती हूँ, तो मुझे बार-बार माँ-पापा की बातें याद आती हैं। माँ की वो चुप मुस्कान, पापा की वो शांत मौजूदगी—इन्हीं के बिना मैं आज जो हूँ, वो नहीं होती।

इस मदर्स डे पर, मैं सिर्फ अपनी माँ का धन्यवाद नहीं कहना चाहती, मैं पूरी दुनिया को बताना चाहती हूँ—

अगर माँपापा का साथ हो, तो एक मुस्लिम लड़की भी वो कर सकती है जिसे समाज ने नामुमकिन मान रखा है।

मेरी माँ ने कभी भाषण नहीं दिए, न बड़ी बातें कीं। उन्होंने सिर्फ एक काम किया—हर मोड़ पर मेरा साथ दिया। उनकी चुप्पी मेरी आवाज़ बन गई, उनका विश्वास मेरी हिम्मत बन गया।

आज मैं सिर्फ एक प्रोफेसर नहीं हूँ, मैं एक मिसाल हूँ उन बेटियों के लिए जिनकी राहों में समाज की परछाइयाँ होती हैं। और मेरी ये उड़ान अकेले मुमकिन नहीं थी। यह उड़ान मेरे माँ के आशीर्वाद और पापा की परछाई की वजह से संभव हुई। आज समाज के वही लोग जो कभी मुझे नाम रखते हैं वे अपने बच्चों को मेरा उदाहरण देते हैं

माँपापा, आपने मुझे सिर्फ पढ़ने की आज़ादी नहीं दी, आपने मुझे सोचने, समझने और दुनिया को बदलने की हिम्मत दी। आपने मुझे उड़ने का सपना दिखाया और फिर वो पर भी दिए जिनसे मैं आज इस ऊँचाई तक पहुँच सकी।

माँ, आपने मुझे सिर्फ जन्म नहीं दियाआपने मुझे पहचान दी।

मदर्स डे और हर दिन, मैं आपका आभार मानती हूँ। पापा, माँआप ही मेरे असली शिक्षक, मार्गदर्शक और भगवान हैं।

माँ की चुप दुआएँ

माँ की चुप दुआओं में, एक आसमाँ बसा,
हर थकती शाम में जैसे कोई चिराग़ जला।

सपनों की डगर जब काँटों से भरी थी,
माँ की मुस्कान मेरे साथ खड़ी थी।

लोगों ने टोका, राह में दीवारें थीं,
माँ-पापा की हिम्मत मेरी तलवारें थीं।

पढ़ने की ख्वाहिश को बदनामी कहा गया,
माँ ने हर आँसू को हौसले से सहा गया।

पापा ने पैसे नहीं देखे, देखा मेरा उजाला,
ख़ुद अंधेरे में रहकर भी दिया मुझे उजियाला।

गिरते-गिरते उठी, जब टूटी उम्मीदें,
माँ ने थाम कर कहा—”ये सिर्फ़ एक सीढ़ी है।”

रिसर्च की रातें, परीक्षा की घड़ियाँ,
हर सन्नाटे में माँ की थीं परछाइयाँ।

कंगन गिरवी रखे, ख्वाब नहीं,
माँ ने दिया मुझे उड़ने का यकीन सही।

और जब बनी मैं प्रोफेसर, एक नाम, एक पहचान,
माँ-पापा की आँखों में दिखा मेरा अरमान।

न कहे शब्दों में, न लिखे किताबों में,
जो माँ ने किया, वो अमिट है हिसाबों में।

माँ, तूने मुझे न सिर्फ़ जन्म दिया,
बल्कि मेरी रूह में जीवन भर का रंग भर दिया।