SPREAD GOODNESS
SPREAD HAPPINESS

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SPREAD HAPPINESS

Herpreet Singh’s Heartfelt Tribute to Her Mother, Narendra Kaur

माँ मेरे लिए एक शब्द नहीं भावना नहीं रीढ़ की हड्डी है हाँ मेरी माँ मेरे लिए मेरे रीढ़ की हड्डी है जो मुझे हमेशा सीधे खड़े होने में मदद करती आई है। उसने मेरी ऊंगली सिर्फ़ तब नहीं थामी जब मुझे चलना नहीं आता था। उसने मेरी ऊंगली तब तब भी थामी जब मेरे क़दम लड़खड़ाए जब उसे लगा मुझे रास्ते में मार्गदर्शन चाहिए जब उसे लगा उसके जीवन का अनुभव मेरे काम आना चाहिए। मेरे लिए मेरे पास मेरी माँ का कोई एक किस्सा नहीं है वो तो मेरे जीवन का हिस्सा है मेरी खुद की कहानी अगर मैं लिखूं तो उस कहानी की लेखिका मेरी माँ है मेरी हर गलती को ढककर उस पे सुंदर सा कढ़ाई किया हुआ मेज़पोश बिछा मुझे सुंदर स्वरूप देने वाली मेरी माँ है।
मैं लेखिका हूँ अपनी कहानियों की पर मेरी आदर्श लेखिका मुझे इस दुनिया में लिखने वाली मेरी माँ है।

कहाँ गिनती है माँ अपने जीवन में आते दुखों को
नहीं दिखता उसे कुछ भी बच्चों की खुशी से बढ़कर।

माँ के लिए ख़ासतौर पर अपनी माँ के लिए हम बहुत ज़्यादा सम्मान सूचक शब्द जैसे उन्हें माताजी या मॉं जी का प्रयोग अमूमन कम करते हैं हम प्यार दुलार की बारिश करते हुए अपनी हर आवश्यकता के लिए उस पर झूल जाते हैं क्योंकि हमें ही पता है कि हमारी माँ कभी भी बुरा नहीं मानेगी या हमें ताना नहीं देगी। माँ पर हम अपना अधिकार खुद पर अपने अधिकार से भी ज़्यादा महसूस करते हैं मुसीबत के समय माँ की गोद से ज़्यादा महफूज़ जगह खोजकर भी नहीं मिलती।
बस माँ का साया और हमारे सर पर उसका आशीर्वाद भरा हाथ फ़िर तो चाहे कोई भी हो जंग जीत सुनिश्चित है।

दफ़न कर देती है सारी ख़्वाहिशें उनके ख़्वाबों के लिए
अपने दुखों की जमीन पर उगाती है इक नई पौध ।

देखती है ऑंखों में नमी लिए इस खिलती पौध को
तो बन जाती है उर्वरा भूमि अपनी इस पौध की ।

करती है प्रयास संरक्षण का हाँ वो माँ है
जो अपनी ज़मीन पर हमारी खुशीयां बो देती है।

भले ही अब मैं अपनी उम्र का आधा शतक पूरा करने वाली हूँ पर मेरी माँ के लिए मैं आज भी एक बच्ची हूँ जिसे उनकी ज़रूरत है और उनका यही प्यार कहीं ना कहीं मेरे अंदर के बच्चे को जीवित रखता है मैं सिर्फ़ जी ही नहीं रही मैं जीवित भी हूँ और मुझमें ये जीवन हमेशा जगाए रखने वाली मुझे जन्म देने वाली मेरी माँ है।

मुझसे दूर रहते हुए भी मेरी हर छोटी-बड़ी ख़ुशी में खुश होने वाली मेरे हर दुःख में दुखी दूर से ही आर्शीवाद कर प्रार्थना कर मेरा हर पल सहारा बनने वाली माँ जिसके बिना मेरा अस्तित्व क्या मैं इस दुनिया में ही ना होती। मुझसे मुझी को मिलाती मेरी माँ जिसने अक्सर हमारी खुशियों के लिए अपनी पहचान बनाने ही नहीं दी अपनी खुशियों को हमारी खुशियों पर वारने वाली माँ आज भी जब प्रार्थना करती है तो उसके हाथ मेरे लिए ही जुड़ते हैं।

बढ़ती उम्र के साथ जब मैंने नज़रें नीची कर खुद ही चलना सीखा तो मेरी माँ ने मुझे दुनिया से ऑंख में ऑंख डाल बात करने को प्रेरित किया।हर वो कदम जिसे उठाने से पहले मैं झिझकी मुझे उसे सही तरह से उठाना सिखाया। मेरी माँ ने जब मुझे पहली बार साईकिल चलाने को प्रेरित किया और कहा कि मैं चाहती हूँ कि तुम आगे चलकर गाड़ी चलाओ तुम्हारे जीवन की स्टेयरिंग व्हील तुम्हारे ही हाथों में हो तो उस समय के समाज में ये बातें बहुत बड़ी थी पर मेरी माँ एक शिक्षिका थीं और वो ये चाहती थीं कि मैं अपने पैरों पर पूरी तरह से खड़ी रहूं आत्मनिर्भर रहूं। मैं डर सी गई थी शायद अपने आपको बढ़ती उम्र में अपने बदलते शारीरिक संरचना के साथ इस समाज में खुद को खड़ा करने का सही तरीका कभी समझ ना पाती क्योंकि आस पास विभिन्न विचारधाराओं के लोग अपने विभिन्न विचारों को आपके मन मस्तिष्क पर छोड़ते हैं और किशोरावस्था एक बहुत ही अनसुलझी पहेली की तरह आज भी हर बच्चे पर हावी हो जाती है जिससे उसे बाहर सिर्फ उसके माता-पिता ही निकाल सकते हैं मेरी माँ ने बहुत ही समझदारी से मेरी प्रेरणा स्रोत बन मुझे मेरे हर विचार से बाहर निकालते हुए मेरे सर्वश्रेष्ठ की ओर क़दम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया मेरी हर लड़खड़ाहट में मेरा सहारा बनी और मुझे सीधा खड़ा किया।आज भी जब मैं अपने पैरों तले की ज़मीन देखती हूॅं तो मैं महसूस करती हूँ कि मुझे इस ज़मीन पर खड़ा मेरी मॉं की सोच और प्रयासों ने किया है।

जीवन के विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुए जब मैं एक स्थान पर ठहर गई तो मुझे नदी सा बहते हुए निरंतर बहना सिखाया। मैंने अपनी माँ से सीखा कि जब नदी सूखने लगती है तो भी रूकती नहीं वो पानी की एक पतली धार बनकर भी दरिया तक पहुंचने का रास्ता तलाशती है और उसकी ये चाह उसे एक ना एक दिन समंदर से अवश्य मिलाती है समंदर का साथ पाकर वो एक बार फिर सिर्फ़ छोटी सी नदी नहीं समंदर बन जाती है।

रूको,ठहरो नहीं निरंतर चलते रहो की ये भावना अगर आज मेरे अंदर हिलोरें ले रही है तो ये सौगात मुझे मेरी माँ श्रीमती नरेंद्र कौर जी से मिली है। मैं आज भी अपने पंख फैलाए आसमान में उड़ रही हूँ और मुझे ये उड़ान मिली है मेरी माँ से।

आज भी मेरी हर गलती पर मुझे समझाने के लिए और मेरी हर कामयाबी पर खुशियां मनाने के लिए मेरी हर मुसीबत में मेरा साथ देने के लिए अगर इस दुनिया का कोई पहला शख़्स मेरे जीवन में मौजूद है तो वो है मेरी माँ जो मुझे अपने जीवन से हर पल सीखाती है एक अच्छी मॉं बनना एक अच्छा इंसान बनना।

सीखा है मैंने ठहराव
खुश रहना कम में

सीखा है मैंने जीना
जीवित रहना क़लम में।

सीखा है मैंने कुछ करना
पहचान बनाना बहम में।

सीखा है मैंने झुक जाना
आंधियों के मौसम में।

सीखा है मैंने माँ बनना
अपनी माँ से इसी जनम में।

प्रत्येक मातृशक्ति को मेरा शत-शत नमन

हरप्रीत सिंह