चलो एक बार फिर से… केवल एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि एक जीवन यात्रा है—आत्मसम्मान, माँ की ममता, टूटी उम्मीदों और फिर से खिलती भावनाओं की यात्रा। यह कहानी है एक स्त्री की, जो परिस्थितियों के आगे झुककर अपने विवाह को अलविदा कहती है, लेकिन अपने भीतर की माँ, बेटी और स्त्री को जीवित रखती है।
एक बच्ची की माँ होने के बावजूद वह नए शहर में नए सिरे से जीना शुरू करती है। लेकिन जब भाग्य उसे दोबारा उसी मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है जहाँ सब कुछ छूटा था—उसी शहर में, उसी व्यक्ति के सामने—तो भावनाओं का एक ज्वार फिर से उमड़ पड़ता है।
कहानी में ऐसे मोड़ आते हैं जब पाठक मुस्कराते हैं, रुकते हैं, सोचते हैं और शायद कुछ आँसू भी पोंछते हैं। और जब यह पता चलता है कि तलाक के कागज़ तो कभी कोर्ट में जमा ही नहीं किए गए थे, तो प्रेम की एक पुरानी लौ फिर से जलने लगती है।
इस उपन्यास के माध्यम से मैंने यही प्रयास किया है कि प्रेम और रिश्तों की उन परतों को छुआ जाए, जिन्हें अक्सर समय की धूल ढक देती है।
– राधा गौरांग “राधिका”
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