यह कहानी एक मासूम बच्ची की है, जो अपनी पिता की सूरत को बहुत दिनों से नहीं देख पाई है। उसके छोटे-से दिल में एक गहरी चाहत और इंतजार है—पिता के आने की, उनके गले लगाने की, उनके साथ खेलने की। हर दिन, वह अपनी गुड़िया के साथ खेलती है, और सोचती है, “क्या वह आज आएंगे?”
पिता की अनुपस्थिति उसे कभी अकेला नहीं करती, क्योंकि वह जानती है कि वह कहीं दूर काम कर रहे हैं, लेकिन फिर भी उसे उनकी याद आती है। घर के हर कोने में एक खालीपन सा महसूस होता है, और उसकी आँखों में एक सवाल है—”कब आएंगे पापा?”
कहानी एक ऐसे बच्चों के दिल की गहराई को छूती है, जो अपने माता-पिता से बेहद जुड़ा होते हैं। यह एक प्रतीक है उस मासूमियत का, जो हर छोटे से छोटे इंतजार में भी एक बड़ी उम्मीद छिपाए रहती है।
यह कहानी एक बच्चे के उस अदृश्य रिश्ते को व्यक्त करती है, जो वो अपने माता-पिता से महसूस करते हैं—वो विशेष संबंध जो दूरी और समय के बावजूद कभी कम नहीं होता। गुड़िया पिता के इंतजार में एक दिल को छू लेने वाली कहानी है, जो रिश्तों की ताकत और एक छोटे से दिल की अनकही चाहत को उजागर करती है।
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