(इज़्तिरार ) ये एक उर्दू शब्द है,,जबकि इसका हिंदी अर्थ है,,- बे-इख्तियारी, मजबूरी, बेबसी) ये एक काल्पनिक प्रेम कहानी है । साथ ही इस कहानी में एक सामाजिक मुद्दा भी दर्शाया गया है,,,जो आपको किताब पढ़ने के बाद पता लगेगा।
जब भी हम प्रेम कहानी की बात करते हैं हमेशा ही हमारे मन में एक सुखद प्रेम कहानी का चरित्र बन जाता है,,,पर ये कहानी आपको बताती है कि प्रेम का रंग हमेशा सिंदूरी नहीं होता,,कभी कभी ये खूनी लाल भी बन जाता है।
हमारा समाज जितना विकास की ओर बढ़ रहा है कहीं न कहीं कोई कड़ी ऐसी रह जाती है जिसके कारण आज भी बहुत से लोग प्रेम या प्रेम विवाह को गलत मानते हैं,,इसे चरित्र से जोड़ कर देखते हैं।
आधुनिक समाज से तो विवाह शब्द ही धीरे धीरे विलुप्त होता दिख रहा है पर ये कहानी एक ऐसे प्रेम को दर्शाती है जो आज भी प्रेम पर हमारा विश्वास बढ़ाती है।
यूं तो प्रेम के कई नाम है इश्क,,प्रेम,,लव,,प्यार पर प्रेम की परिभाषा को संपूर्ण तभी माना जाता है,,जब वो दो प्रेमियों को मिला दे,,, हालांकि मेरे जानने वाले ये अंदेशा जरूर जाहिर करेंगे कि ये मेरे किसी प्रेम की कहानी तो नहीं है??
पर इस धारणा को खत्म करते हुए मैं पहले ही बता दूं कि ये एक काल्पनिक रचना है इसे एक रचना की तरह ही पढ़े।
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