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SADHNA KE MANKE / साधना के मनके

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जब शब्दों का श्रृंगार भावों से होता है तब कविता बन जाती है इसीलिए कहा जाता है कि कविता कल्पना और विचारों का सुंदर तालमेल होती है। जब अपने आसपास और जिंदगी में कुछ अप्रत्याशित दिखाई देता है तब मन में भावों का आवागमन होता है। यही भाव शब्दों में समाहित होकर नया सृजन कर जाते हैं। कवि या लेखक अपने भावों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है और पाठक उसे अपने भावों के अनुसार पढ़ता है तथा रचना से अपने विचारों का जुड़ाव महसूस करता है यही बात रचनाओं को सार्थक बनाती है।

‘ साधना के मनके ‘ भावों, विचारों और अनुभूतियों से सुसज्जित मनकों की माला है । इसमें प्रेम, आध्यात्म , जीवन दर्शन , सामाजिक सरोकार से सम्बंधित इक्यावन रचनाएँ संकलित हैं। मैंने अपनी लेखनी को किसी विधा में बाँधने का प्रयास नहीं किया है। इसे स्वच्छंद उड़ान भरने दिया है। यद्यपि इसमें आपको कई विधाएँ मिलेंगी । हर मनके का अपना लालित्य है , अपना सौंदर्य है। यह मेरी साहित्य साधना का आठवाँ मनका है।

मुझे आशा है ‘ साधना के मनके ‘ में आपको अपने मन के मनके की सुन्दरता मिलेगी –

 

पढ़ सको तो पढ़ो वेदना, निभा सको तो प्रीत
अधरों की मुस्कानों संग ,लिखे विरह के गीत,
कलम खुशी से लिखती है फूलों वाला मकरंद,
मेरे मन के मनकों की माला है स्वच्छंद।

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