SPREAD GOODNESS
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Hardik Bharadwaj Wrote a Story on Her Mother Alpa Bharadwaj – A Heartfelt Tribute to Strength and Love

शीर्षक: माँ का आँचल

जहाँ लड़कों का संग, वहाँ बजते हैं मृदंग,

जहाँ बूढ़ों का संग, वहाँ खर्चों का होता है तंग।

नमस्कार!

आशा है मेरी यह कहानी “माँ का आँचल” आपके हृदय को छू जाएगी।

तारीख थी ०१ मई २००९, समय था दोपहर का मधुर वेला — ठीक १:३० बजे, जब मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया।

उस क्षण माँ के हृदय में उमड़ पड़ा था खुशियों का समुंदर; मानो चाँदनी धरती पर उतर आई हो।

दो दिन बाद मेरे होने की खुशी में दादी माँ ने सुंदरकांड का पाठ कराया।

चारों दिशाओं में मंगल ध्वनि गूँज उठी, जैसे स्वर्ग के द्वार भी हर्षित हो उठे हों।

समय की रथ पर सवार होकर मैं धीरे-धीरे सात महीनों का हो गया।

जब भी मैं खाने में नखरे करता, तो माँ अपनी ममता के मोरपंख से मुझे बहलाती —

कभी तोते की मधुर बोली में, कभी मोर की नर्तन भंगिमा में, कभी कबूतर की कोमल गुटरगूँ में मुझे खिलाती।

पिता जी जब डाँटते, तो माँ अपने स्नेह-सरोवर से शांति के कमल खिला देती।

देखते-देखते मैं एक वर्ष का हो गया — एक नन्हा बालक जो आम के रस में डूब जाया करता था।

माँ हँसकर कहती, “तू तो साक्षात कृष्ण बन गया है मेरा!”

मेरी नटखटियाँ, मेरी शरारतें — सब माँ के प्रेम की गंगा में पवित्र हो जातीं।

फिर आया वह दौर जब मैंने नन्हें कदमों से विद्यालय की ओर रुख किया।

विद्यालय से लौटते ही मैं अपनी माँ को अपने दिन भर के कारनामे सुनाया करता,

और वह मेरे हर शब्द को अपने आँचल की पवित्र थाली में समेट लेती।

वो बचपन की चहकती दोपहरें, माँ के आँचल की महकती साँझें —

आज भी मेरी स्मृतियों के आँगन में मधुर गीत गुनगुनाती हैं।

काश! एक बार नहीं, सहस्त्रों बार, मैं फिर से अपनी माँ के आँचल में छिपकर छोटा-सा कन्हैया बन जाऊँ।

कण-कण में हरि, क्षण-क्षण में हरि —

मेरी माँ कृष्ण भक्ति में ऐसी रची-बसी है कि हर धड़कन से मधुर मंत्र फूटते थे।

जब भी बचपन में भय का काला बादल मुझ पर मंडराता,

माँ अपने आँचल की चादर से मेरी दुनिया में उजाला भर देती।

माँ हर दिन कुछ नया सिखाती — चलना, बोलना, जीना ।

आज भी माँ का वो स्नेहिल स्पर्श, वो धैर्य की गंगा, वो ममता का सूरज मेरे जीवन को आलोकित करता है।

वह माँ, जिसने अपने रक्त-स्वेद से मुझे सींचा, जिसने हर दुःख को अपने आँचल में बाँध लिया —

उसी माँ को हम आज वृद्धाश्रम के निर्जन द्वार पर छोड़ आते हैं! क्यों?

माँ स्वयं ईश्वर का धरती पर अवतरित अनुपम स्वरूप हैं —

उसका ऋण कोई भी जन्म, कोई भी तपस्या नहीं चुका सकती।

हर वो पल, जो माँ के संग बीता,

हर वो स्मृति, जो माँ के आँचल में संजोई,

एक अमूल्य धरोहर बनकर जीवन के पन्नों पर अमिट अक्षरों में अंकित हो गई है।

 

“माँ की ममता एक अनमोल खज़ाना है, जो समय की धूल से भी कभी मुरझाता नहीं।”

 

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