कविता संग्रह “धूप की जेब में” संवेदना, स्मृति और संघर्ष का एक ऐसा संसार रचता है जहाँ हर वस्तु खाली कुर्सी, पुराना कैलेंडर, भीगी खिड़की, या दीवार की दरार जीवित प्रतीत होती है। कवि रामप्रकाश निर्मलकर की यह रचनाएँ केवल शब्दों की श्रृंखला नहीं हैं, बल्कि आत्मा की हल्की-सी कंपकंपाहट हैं जो रोज़मर्रा की चीज़ों में असाधारण अर्थ ढूँढ लेती हैं।
कवि की दृष्टि में साधारण सबसे असाधारण है। वह ‘धूप की जेब में रखा सपना’ देखता है, ‘खाली कुर्सियों’ से संवाद करता है और ‘पुरानी रज़ाई’ के भीतर सोई यादों की गंध महसूस करता है। यह संग्रह एक ऐसी कविता-दृष्टि प्रस्तुत करता है कवि ने अपने स्वर में आधुनिक, आत्मीय और बहुत मानवीय मूल्यों को शामिल किया है।
इस संग्रह की कविताएँ जीवन के हर रंग को छूती हैं एकांत, प्रेम, स्मृति, सामाजिक यथार्थ, संघर्ष और आत्ममंथन। कभी यह कवि के भीतर की चुप्पी बनकर उभरती हैं, तो कभी समाज के पाखंड और अन्याय के खिलाफ़ स्वर बनकर। ‘पटरी के सिपाही की पुकार’, ‘उस शाम भूखी सोई थी’ जैसी कविताएँ जहाँ सामाजिक चेतना जगाती हैं, वहीं ‘छत पर सोया चाँद’ या ‘माटी की सुराही’ जैसे बिंब कवि की सूक्ष्म संवेदनशीलता का परिचय देते हैं।
यह संग्रह हमें सिखाता है कि कविता किसी मंच की नहीं, बल्कि मन की उपज होती है। हर शब्द यहाँ आत्मा से टपका हुआ प्रतीत होता हैन कोई कृत्रिमता, न शोर, बस एक शांत प्रकाश जो भीतर उतरता है।
“धूप की जेब में” सचमुच जीवन की उन छोटी-छोटी ऊष्माओं को सहेजने का प्रयत्न है, जिन्हें हम भागती दुनिया में अक्सर खो देते हैं। यह संग्रह पाठक को रुकने, सोचने और महसूस करने का अवसर देता है।





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