बदन को दर्द का एहसास अब है कहाँ
तुझसे बिछड़ने वालों का घर अब है कहाँ
सड़कें पहचानने से मना करती है मुझे
कहती हैं मेरा हाथ पकड़ने वाला अब है कहाँ
दर्द अब छू कर गुज़रता न्ही मुझसे
तेरी याद रहती है मगर तू आने वाला अब है कहाँ
काँपती थी ज़माने की लड़किया मुझसे बात करते वक़्त
वह ख़ौफ़ तेरा उन में भी अब है कहाँ
चाहता तो ख़ुदा भी ठीक कर सकता था हमारे बीच के फ़ासले
मगर रब को भी इंसानियत अब है कहाँ
हैं काफ़ी बातें किससे कहानिया करने को मेरे पास
मगर बात बदलने का मन अब है कहाँ
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