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इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनकाल में दो जीवन जीता है। एक प्रत्यक्ष और एक अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष जीवन सबको दिखाई देता है और अप्रत्यक्ष उस व्यक्ति का स्वयं का कल्पनालोक है। कल्पना लोक के जीवन को प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने तरीके से जीता है। उसकी प्रस्तुति भी वह अपने तरीके से ही करता है या नहीं भी करता है। वह प्रत्यक्ष जीवन सांसरिक जीवन में आजीविका के लिए श्रम और पारिवारिक जीवन को सजाने सँवारने में व्यतीत कर लेता है और अप्रत्यक्ष जीवन कल्पनालोक में भ्रमण करने में चला जाता है। कल्पनालोक में भ्रमण को वह अभिरुचि के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। उसकी अभिरुचि कला, विमर्श, संगीत, नाटक, साहित्य और इतर गतिविधियां हो सकती हैं। जीवन में व्यवसाय अथवा नौकरी की आपाधापी में अक्सर अप्रत्यक्ष जीवन से संबन्धित अभिरुचियाँ कहीं परिपेक्ष्य में चली जाती हैं। जैसे ही वह अपने जीवन के साठ दशक पूरे कर सेवानिवृत्ति के कगार पर पहुंचता है तब वह अपनी सुप्त अभिरुचियों को पुनः जागृत करने का प्रयास करता है।

अपने जीवन के अनुभव का सार और अपनी मनोभावनाओं को संगीत, नाटक अथवा साहित्य के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास करता है। जहां तक साहित्य का प्रश्न है तो साहित्यकार अपनी भावनाओं को जब तक कथा कहानी या कविता के माध्यम से व्यक्त नहीं कर लेता वह अव्यक्त भावनाओं के साथ अजीब सी बेचेनी का अनुभव करता रहता है। ऐसी ही पीढ़ी का प्रतिनिधित्व श्री श्याम खापर्डे जी करते हैं। वे अपनी सशक्त कविताओं के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने वाले संवेदनशील कवि हैं।

उनकी कवितायें जीवन के उतार चढ़ाव, शृंगारिक प्रेम, राष्ट्रप्रेम और मानवीय संवेदनाओं के साथ ईमानदारी से जीने का संदेश देती हैं। साथ ही दूसरी तरफ उनकी कविताएं सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक भेदभाव के प्रतिकार के लिए अपनी कलम से सशक्त संदेश देने से चूकती भी नहीं है।

‘प्रतिकार’ श्री श्याम खापर्डे जी के संवेदनशील हृदय से उपजी वे तमाम कवितायें हैं जो हमे हमारे आसपास की घटनाओं तथा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष जीवन का विभिन्न दृष्टिकण से समझने बूझने और अनुभव करने के लिए बाध्य करती हैं। यह कवि का तीसरा काव्य संग्रह है। ई-अभिव्यक्ति के सम्पादन के समय मुझे उनकी कविताओं के माध्यम से उनसे रूबरू होने का अवसर मिला। यह काव्य संग्रह साहित्य जगत में एक विशिष्ट स्थान बनाएगा ऐसे मेरा विश्वास है और मंगलकामना भी। श्री श्याम खापर्डे जी को ‘प्रतिकार’ के सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।

 

– हेमन्त बावनकर, संपादक (ई-अभिव्यक्ति, पुणे)

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