मानव जीवन की समस्त क्रियाएँ ‘आर्थिक’ गतिविधियों का केन्द्र होती हैं। इसे यों भी कहा जाता है कि ‘अर्थ’ ने मानव की समस्त गतिविधियों को अभिभूत किया है। ‘वाणिज्य’ मानव जीवन की इन्हीं ‘आर्थिक’ गतिविधियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है। ‘वाणिज्य’ शब्द की मूल संकल्पना को प्रसिध्द विद्वान जे. स्टीफेंसन ने इसप्रकार उद्धृत किया है-
“वाणिज्य उन कुल प्रक्रियाओं का समुच्चा है, जिनके कारण माल के व्यक्तियों (व्यापार और साधन) स्थान (यातायात और बीमा) तथा समय (गोदाम) के मध्य आदान-प्रदान में आनेवाली अड़चनें समाप्त होती हैं।”1
इस प्रकार से ‘वाणिज्य’ के कार्यकलापों को हम उनके उप-विभाग में वर्गीकृत कर सकते हैं, जैसे व्यापार, यातायात, गोदाम, बीमा, बैकिंग, वित्त आदि। इन विविध वाणिज्य क्षेत्रों का सफल संचालन मानव समाज में ‘भाषा’ के माध्यम से ही किया जाता रहा है। भाषा के विषय में प्रसिध्द साहित्यकार श्री. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने इसप्रकार लिखा है- “भाषा कल्पवृक्ष के समान है। यदि भाषा को ठीक तरह से साधा जाए तो, वह हमें सब कुछ दे सकती है।”2
भाषा की वास्तव में साधना अथवा कठोर साधना ही है, जो निरंतर प्रयास से साध्य होती हआजहै।है। आज का युग सूचना-क्रांति का युग हैं प्रो. वाई. वेंकटरमणराव ने “आज के युग को अनुवाद का युग भी माना है।”3 अनुवाद से तात्पर्य है एक भाषा की पाठ्यसामग्री को पहले अर्थ और फिर शैली की दृष्टि से दूसरी भाषा में अंतरण करताकरनाकरना है। वाणिज्य-क्षेत्र में इसी ‘अंतरण’ अर्थात अनुवाद की नितांत आवश्यकता प्रतीत होती है। तभी ज्ञान की समस्त खिडकियों के द्वार खोले जाना संभव हो सकेंगा।
आज का युग वाणिज्य का युग हैं। वाणिज्य का संबंध वस्तु के उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक से होता है। वर्तमान में वाणिज्य क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग व्यापक पैमाने पर किया जा रहा है। वाणिज्य क्षेत्र में वितरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा है। वितरण व्यापार में साधन-व्यापार, परिवहन, बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थाएँ बीमा, सरकारी अर्धसरकारी तंत्र, सहकारी संस्थाएँ, विपणन, विक्रयकला, विज्ञापन, आदि में हिंदी प्रयोग की संभावनाएँ बढ़ी हैं। उसके प्रयोग की संभावनाओं का विकास हुआ है तथा उसमें वैज्ञानिक एवं तकनीकी मानदंडों को अपना कर, इस क्षेत्र को व्यापकता, प्रदान की गयी है। आधुनिक वाणिज्यिक क्षेत्र में बढ़ती प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता ने.,, ‘वाणिज्य’ की भाषा और उसके प्रयोग में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। इसलिए वाणिज्यिक अनुवाद के माध्यम से भाषा को सहज, सरल एवं प्रयोजनमूलक स्वरूप प्रदान किया जाना भी, इस विषय चयन के माध्यम से अनुसंधान पश्चात अवश्य संभव हुआ है।
‘वाणिज्यिक’ क्षेत्र में अनुवाद की विविध समस्याएं एवं समाधान कर, उनके निराकरण हेतु इस विषय पर अनुसंधान करना, एक व्यापक कार्य रहा है। वाणिज्यिक क्षेत्रों में से प्रमुख एवं विशिष्ट क्षेत्रों को अनुसंधान कार्य के लिए चयन किया गया है। जिनमें प्रमुख हैं- व्यापार, परिवहन, बैंकिंग, एवं वित्तीय संस्थाएं, बीमा, सरकारी-अर्धसरकारी तंत्र, विपणन, विक्रय कला, विज्ञापन, आदि।
प्रसिध्द भाषाविद् डॉ. बाबूराम सक्सेना के शब्दों में “भाषा यह है, जो बोली जाती है, जो विशिष्ट समुदाय में बोली जाती है, और जो मनुष्य और उसके समाज के भीतर की ऐसी कड़ी है, जो निरंतर आगे जुड़ती रहती है।”4
मनुष्य एवं समाज के सहसंबंधों को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य भाषा करती है, उसी तरह मानव समाज की समस्त गतिविधियाँ ‘अर्थ’ से जुड़ी हुयी है, ऐसा कहा जाना सही एवं सटीक प्रतीत होता है।
वाणिज्यिक क्षेत्र में अनुवाद कार्य ने विश्व-ज्ञान के प्रवेश को संभव ही नहीं बनाया बल्कि सहजता भी रूपायित की है। ऐसा कहा जाना अधिक समीचीन होगा। वैश्वीकरण के इस दौर में भारत एक बड़ी व्यापार मंडी के रूप में विकसित हो रहा हैं, यह भी सत्य है।
वास्तव में अनुवाद एक ऐसी विधा है, जिसमें विशिष्ट जीवात्मा को परकाया प्रवेश करना पड़ता है। यह अत्यंत कठिन एवं कष्ट साध्य कार्य है। जो निरंतर अभ्यास, प्रशिक्षण एवं ज्ञान के द्वारा अर्जित किया जाता है। इस ‘अनुवाद’ की अनेक समस्याएँ हैं, जिनका जिक्र यहाँ करना अत्यधिक समीचीन प्रतीत नहीं होता।होताहोता बल्कि उन पर विस्तार से बात हुई है। “वाणिज्य के -क्षेत्र में अनुवाद की समस्याओं का समग्र समस्याएं एवं समाधान” भाषा की प्रयोजनीयता को सुनिचित करने की दृष्टि से, अत्यंत आवश्यक महसूस होता हैं। अन्य कारण यह है कि हिंदी को ‘राजभाषा’ के रूप में पदासीन करने एवं वर्तमान भूमंडलीकरण की प्रक्रिया से भारतीय समाज को सहज रूप से जोडने में, इस अनुसंधान कार्य से निश्चित सहायता प्राप्त होगी, ऐसी हमारी मान्यता है एवं यही अनुसंधान का मुख्य लक्ष्य भी रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में हमने “वाणिज्य- के क्षेत्र में अनुवाद की समस्याएं एवं समाधान” इस शोधकार्य के उद्देश्यों पर प्रकाश डालकर, शोध-विषय के चयन की सार्थकता को इसी भाँति विश्लेषित करते हैं। इस कार्य के विविध उद्देश्य संक्षिप्त में निम्नानुसार सुनिश्चित किये गए हैं-
- ‘वाणिज्य’ के क्षेत्र में भाषा के विविध प्रयोगों को सुनिश्चित करना।
- भारत में व्यावसायिक एवं वाणिज्यिक विकास में वृध्दि करने हेतु, इस कार्य से अवश्य ही मदद मिलेंगी।
- भारत में वाणिज्य शिक्षा का विकास करना संभव होगा।
- वाणिज्यिक क्षेत्र में हिंदी प्रयोग की संभावनाएँ खोजी जाना संभव होगा।
- वाणिज्यिक क्षेत्र में अनुवाद का स्वरूप एवं प्रासंगिकता को निश्चित करना और भविष्यकालीन संभावनाओं का पता लगाना।
- वाणिज्य-क्षेत्र में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देना।
- औद्यागिक शिक्षण एवं प्रशिक्षण की अवस्था में सुधार करना।
- वाणिज्य-क्षेत्र में अनुसंधान व विकास क्रियाओं को प्रोत्साहित करना एवं उसे जनसामान्य तक पहुँचाना, आदि।
- वाणिज्यिक अनुवाद की पारिभाषिक शब्दावली सुनिश्चित करना एवं उसके प्रचलन एवं प्रयोग पर बल देना।
- वाणिज्य-क्षेत्र में सहज अनुवाद को बढ़ावा देना और हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करने की प्रवृत्ति को सकारात्मक प्रोत्साहन देना।
उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु मैंने शोध-प्रबंध “वाणिज्य-क्षेत्र में अनुवाद की समस्याएं एवं समाधान” के विषय को आठ अध्यायों में विभाजित किया है. जिनका सार रूप में, प्रस्तुतीकरण इस प्रकार है-
प्रथम अध्याय में वाणिज्य-क्षेत्र का अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूपगत विभाजन किया गया है। वितरण व्यवस्था के अंतर्गत वाणिज्य क्षेत्र में प्रयुक्त भाषा, स्वरूप, महत्व को स्पष्टीकृत किया गया है। इस अध्याय में भारत में व्यावसायिक विकास का इतिहास और वाणिज्य शिक्षा के विकास पर विहंगावलोकन किया गया है। इस अध्याय में ‘वाणिज्य’ की संकल्पना स्पष्ट होती है तथा वाणिज्यिक विकास पर सविस्तार विश्लेषणात्मक विचार हुआ है। साथ ही ‘भाषा’ के विविध प्रयोग भी प्रयोजनमूलकता यह अध्याय ‘विषय प्रवेश की अभिप्रवृत्तियों को रेखांकन करने के लिए प्रयुक्त हुए है। यह अध्याय विषय-प्रवेश ‘द्वार’ सिद्ध हुआ है।
द्वितीय अध्याय में अ) विभाग में वाणिज्य क्षेत्र में ‘राजभाषा नीति का स्वरूप एवं क्रियान्वयन के अंतर्गत केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में सक्रिय, वाणिज्यिक क्षेत्र में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर हिंदी का प्रयोग हो रहा है, और इनमें परस्पर व्यवहार एवं संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता प्रदान की गयी है।
अ)
1) संविधान में राजभाषा नीति का स्वरूप,
2) राजभाषा के रूप में हिंदी का चयन,
3) राजभाषा हिंदी की संवैधानिक स्थिति एवं स्वरूप में नीति निर्धारण,
4) वाणिज्यिक क्षेत्र में राजभाषा नीति का क्रियान्वयन प्रस्तुत हुआ है।
आ) ‘भाषा’ की अवधारणा प्रयोजनमूलक भाषा की अवधारणा, वाणिज्यिक व्यावसायिक भाषा सामान्य विशेषताएँ एवं संरचनात्मक विशेषताएँ दी गयी है।
तृतीय अध्याय में वाणिज्य-क्षेत्र में ‘भाषा’ प्रयोग के विविध संदर्भों को रेखांकित किया गया है, जिसमें भाषा की प्रयोजनीयता पर बल देकर, उसके उपयोजनात्मक पक्ष का विश्लेषण प्रस्तुत हुआ है। इस हेतु अनेक संदर्भगत उदाहरण प्रयुक्त हुए हैं, जिनका भाषिक संरचना के आधार पर विश्लेषण प्रस्तुत हुआ है।
चतुर्थ अध्याय में एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति को जोडने का पुनीत दायित्व ‘अनुवाद’ के माध्यम से हुआ है। यहाँ अनुवाद की संकल्पना, सीमित दायरों से हटकर व्यापक हो गयी है। इसी व्यापकता को स्पष्टीकृत करने के लिए अनुवाद की व्युत्पत्ति, अर्थ, प्रसिद्ध विद्वानों की परिभाषाएँ, अनुवाद स्वरूप एर्व मेद, अनुवाद के प्रकार, अनुवाद की आवश्यकता, अनुवाद का महत्व, अनुवाद के सिद्धांत एवं अनुवादक के गुण, अनुवाद की सीमाओं को स्पष्ट किया गया है। ताकि शोध की पूर्व पीठिका को आकलित करना संभव हो सकें।
पंचम् अध्याय के अंतर्गत “वाणिज्य क्षेत्र में अनुवाद की समस्याएं एवं समाधान” पर कार्य में ‘वाणिज्य’ से संबंधित प्रत्येक क्षेत्र एवं उपक्षेत्र में हिंदी भाषा के प्रयोग स्थिर हो चुके हैं। इसी भाषा प्रयुक्ति को स्पष्टीकृत करने के लिये वाणिज्य क्षेत्र के कार्य में अनुवाद-स्वरूप को संक्षिप्त रूप प्रदान किया गया है। जिसमें
1) राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय-व्यापार की कार्यप्रणाली में व्यापार-संप्रेषण, व्यापारिक पत्र व्यवहार, अर्थ, अंतर
2) परिवहन / यातातात
1) अर्थ, परिभाषा,
2) व्यवसाय में परिवहन के कार्य
3) परिवहन का महत्व
4) वाणिज्य विकास में परिवहन की भूमिका अ) रेलवे विभाग ब) डाक विभाग,
3) बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थाएँ
1) बैंकिंग का स्वरूप
2) बैंकिंग की विशेषताएँ कार्य-
3) बैंकों के प्रकार
4) बैंकिंग का महत्व, उद्देश्य
अ) बैंकिंग पत्र व्यवहार
5) बीमा – ‘बीमा का तात्पर्य, परिभाषा, महत्व एवं लाभ बीमा सिद्धांत व प्रकार,
6) सरकारी, अर्धसरकारी तंत्र सरकारी कार्यालय में हिंदी के प्रयोग क्षेत्र,
7) सहकारी संस्थाएँ-स्वरूप
8) ‘विपणन’ स्वरूप, परिभाषा, विशेषता एवं संप्रेषण माध्यम से कार्यान्वयन,
9) विक्रय कला स्वरूप परिभाषा, विशेषता, संप्रेषण माध्यम में कार्यान्वयन
जनसंचार माध्यम-
जनसंचार माध्यमों के आधार पर, विज्ञापन जनसंचार तात्पर्य, परिभाषा एवं विज्ञापन की परिभाषा, स्वरूप, विशेषताएँ एवं माध्यमों के आधार पर-विज्ञापन विश्लेषित हुआ है।
षष्ठ अध्याय में वाणिज्यिक क्षेत्र में अनुवाद की समस्याओं में एवं सहकारी संस्थाएँ 4) बीमा 5) सरकारी अर्ध सरकारी तंत्र में कार्यालय में हिंदी को प्रयोग एवं पत्राचार 6) विपणन, विक्रय कला एवं विज्ञापन, आदि क्षेत्रों की समस्याएँ उदा. सहित स्पष्ट की गयी है। ताकि वाणिज्यिक अनुवाद की समस्याओं को सकारण आकलित किया जाना संभव हो।
सप्तम् अध्याय में वाणिज्य क्षेत्र में विभिन्न अनुवाद की समस्याओं का समाधान दिया गया है। विषय की ‘वस्तुनिष्ठता’ सुनिश्चित करने हेतु, केंद्रीय सरकार के कार्यालय एवं सार्वजनिक उपक्रमों के अनेक संस्थानों में पदस्थ अधिकारी तथा कर्मचारियों ने विशिष्ट ‘प्रपत्र’ में साक्षात्कार की प्रश्नावली के ‘प्रेषण’ के आधार पर समस्याओं का समाधान किया गया है एवं उनके अमूल्य अनुभूतिजन्य परामर्श जो समाधान की दिशा में कारगर तथा रामबाण सिद्ध होंगे, उनका निरूपण किया गया है। तदोपरांत शोध-निष्कर्ष तक हम पहुँच सकें है।
अष्टम् अध्याय में अ) अनुवाद की प्रासंगिकता एवं आ) अनुवाद की भविष्यकालीन संभावनाएँ दी गयी, जिसमें विभिन्न वाणिज्यिक क्षेत्रों में राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की प्रयोगात्मक समस्याओं की खोज तथा समस्याओं का समग्र मूल्यांकन होने के साथ-साथ समस्याओं का निदान भी सुझाया गया है। जिससे शोध के प्रमुख अभीष्ट को प्राप्त कर, अन्य उद्देश्य पूर्ण अवश्य हो सकेंगे। निष्कर्ष में सभी अध्यायों का सार बतलाते हुए, वाणिज्यक क्षेत्र में अनुवाद की समस्याएं एवं समाधान में, विषय के निष्कर्षों को सार रूप में निरूपित किया गया है।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि इस कार्य से अवश्य ही वाणिज्य क्षेत्र समर्थ सिद्ध हो सका है। इस शोध कार्य द्वारा अंग्रेजी से हिंदी एवं हिंदी से अंग्रेजी ‘अनुवाद’ करते समय आनेवाली भाषा वैज्ञानिक एवं भाव तथा संदर्भगत समस्याओं का उदाहरणों सहित रेखांकन कर, जहाँ उनके निदान का मार्ग प्रशस्त हुआ है, वहीं अनुवादकों को इन विविध आधारों पर ‘अनुवाद’ करने हेतु विविध सिद्धांतों का प्रणयन कर, उन्हें आत्मसात करने में सुलभता प्राप्त होगी, ऐसा हमें पूर्ण विश्वास है। यही इस शोध कार्य की सामाजिक, एवं राष्ट्रीय उपादेयता मानी जायेंगी। हमें आशा है कि यह अनुसंधान एक सकारात्मक प्रयास सिद्ध होगा, जिससे वाणिज्यिक क्षेत्र की अनुवाद विषयक समस्याओं का कारगर हल होगा, वही सहजता से ‘हिंदी’ राजभाषा के रूप में पूर्णतः पदासीन होकर, राष्ट्रीय आय में असीम अभिवृद्धि करने के लिए वाणिज्यिक क्रियाओं को संपन्न कराने वाली सक्षम एवं सटीक भाषा बन सकेंगी। इससे एक ओर विश्व बाजार में हिंदी की वाणिज्यिक छवि को बल मिलेंगा, वहीं दूसरी ओर भारतीय उत्पाद को बल देने में हिंदी विज्ञापन की भाषा बनकर, समुचित वाणिज्यिक पारिभाषिक शब्दावली को प्रस्तुत करेंगी, जिसके निरंतर प्रयोग की संभावना शनैः-शनैः बढ़ती रहेंगी।
डॉ. सुनीता बुंदेल





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